________________
महान् गुणों के बावजूद उसका स्वभाव यदि कुटिलता नौर दुष्टता से सम्पृक्त नहीं तो कम-से-कम अविश्वसनीय अवश्य है । इस प्रकार किसी भी तरह आप ईश्वर की सिद्धि का प्रयत्न करें; वह विफल ही होगा । इससे तो अच्छा है कि ईश्वर की सत्ता ही न मानी जाए ।
पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य विरचित 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्तवन में लिखित यह श्लोक विधिवत् अनुशीलनीय है । " कर्त्तास्ति" अर्थात् हे वीतराग ! जो प्रामाणिक लोग 'विश्व जगत् का कोई कर्त्ता है - (१) वह एक है ( २ ) सर्वव्यापी है ( ३ ) स्वतन्त्र है और (४) नित्य है' इत्यादि दुराग्रह से परिपूर्ण सिद्धान्तों को स्वीकार करते हैं, उनका तू अनुशास्ता नहीं हो सकता ।
प्रत्यक्ष इत्यादि प्रमाणों से जाने हुए स्थावर और जंगम रूप तीनों लोकों [ स्वर्ग - मृत्यु- पाताल लोक ] का अनिर्वचनीय स्वरूप कोई पुरुष विशेष सृष्टिकर्त्ता है, इसमें प्रमाण है कि - पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष इत्यादि पदार्थ किसी बुद्धिमान् कर्त्ता के बनाये हुए हैं क्योंकि ये कार्य हैं; जो कार्य होते हैं वे सब किसी बुद्धिमान् कर्त्ता के बनाये हुए होते हैं । जैसे- घट, पृथ्वी, पर्वत तथा वृक्ष इत्यादि भी
विश्वकत्तुं त्व-मीमांसा - ३४