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जाती है ? यदि ऐसा है तो फिर कुम्भकार (कुम्हार) की उपस्थिति भी विश्व-जगत् की सृष्टि कर सकती है, क्योंकि केवल उदासीन उपस्थिति दोनों में समान है।
क्या ईश्वर ज्ञान और इच्छापूर्वक विश्व-जगत् की सृष्टि करता है ? यह असम्भव है, क्योंकि बिना शरीर के ज्ञान और इच्छा हो नहीं सकती।
क्या वह विश्व-जगत् की सृष्टि शारीरिक क्रिया के द्वारा करता है या अन्य किसी प्रकार की क्रिया द्वारा ?
ये दोनों ही बातें असम्भव हैं, क्योंकि बिना शरीर के कोई क्रिया भी सम्भव नहीं है। यदि आप मानते हैं कि वह सर्वत्र है तो मानते रहें। उससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि वह सर्वस्रष्टा हो सकता है।
अब फिर मान लें (तर्कानुरोध से)कि-एक शरीररहित ईश्वर अपनी इच्छा और क्रिया से विश्व-जगत् की संरचना कर सकता है। उसने विश्व-जगत् की रचना क्या किसी व्यक्तिगत सनक के कारण प्रारम्भ की ? यदि हाँ, तो उस स्थिति में विश्व-जगत् में कोई प्राकृतिक नियम या व्यवस्था नहीं होनी चाहिए ? तब क्या उसने यह रचना मनुष्यों के नैतिक और अनैतिक कार्यों के आधार पर की? यदि
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-३०