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विश्व जगत् का भी कोई कारण है तो यह मानना आवश्यक नहीं है कि वह कारण कोई बुद्धिमान् चेतनाशील कर्ता ही होगा, जैसा
आप ईश्वर को
मानते हैं ।
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यदि यह तर्क दें कि मानव कर्त्ता के निर्देशन के आधार पर ईश्वर को चेतन कर्त्ता माना गया है तो उसी आधार पर उसे मानव के समान ही अपूर्ण माना जायेगा । यदि तर्क दें कि यह विश्व जगत् इस प्रकार का कार्य नहीं है, जैसे मानव निर्मित अन्य कार्य होते हैं । उनके कुछ समान ही कुछ अन्य प्रकार के कार्य होते हैं तो इससे कोई अनुमान सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि जल से उठने वाला धुश्रा उसी धुंए के समान है जो आग से उठता है किन्तु जल में अग्नि का अनुमान कोई नहीं करता ।
यदि यह कहा जाए कि विश्व जगत् एक बिल्कुल भिन्न प्रकार का कार्य है, जिससे ऐसा अनुमान सम्भव है, चाहे अब तक कोई इस प्रकार का कार्य पैदा करते हुए नहीं देखा गया है । तो फिर पुराने खंडहरों को देखकर यह अनुमान करना होगा कि ये भी किसी चेतन कर्त्ता के कार्य हैं, क्योंकि ये भी कार्य हैं और उनका कोई चेतन कर्त्ता हमने नहीं देखा है । ये दोनों कार्य हैं और दोनों का
विश्वक' स्व-मीमांसा -२८