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हो सकता है कि ईश्वर भी परिवर्तनशील है, और उसे बनाने वाला भी कोई कर्त्ता होना चाहिए। उस कर्ता को बनाने वाला भी एक कर्ता मानना होगा और इस प्रकार अनन्त कर्ता मानने होंगे। यदि ईश्वर कर्ता है तो वह ही परिवर्तनशील होगा क्योंकि उसका कार्य परिवर्तनशील है और वह निर्माण में लगा हुआ है । ___इसके अतिरिक्त हम जानते हैं कि जो बातें कभी घटित होतो हैं और अन्य किसी समय घटित नहीं होती, उन्हें कार्य कहा जाता है, किन्तु विश्व-जगत् अपने रूप में सदैव विद्यमान रहता है। यदि यह तर्क दिया जाए कि विश्व-जगत् के अन्दर विद्यमान वस्तुएँ जैसे पेड़-पौधे कार्य हैं तो फिर आपका तथाकथित ईश्वर भी कार्य होगा, क्योंकि उसकी इच्छा और विचार विभिन्न समयों में विभिन्न रूप से कार्य करते माने जायेंगे और वे ईश्वर में निहित हैं। जैसे-पेड़-पौधे जगत् में निहित हैं। अतः विश्व-जगत् को कार्य माना गया है। इस प्रकार इच्छा
और विचार के आधार पर वह कार्य हो जाता है। तब अणु भी कार्य बन जायेंगे, क्योंकि ताप के द्वारा उनके रङ्गों में परिवर्तन पाते हैं।
यदि तर्क के लिए मान भी लें कि विश्व-जगत कार्य है और प्रत्येक कार्य का एक कर्ता कारण होता है। अतः
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-२७