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सावयव से क्या तात्पर्य है ? यदि इसका तात्पर्य अवयवों के रूप में आता है तो अवयवों में विद्यमान जो सामान्य (जाति) है उसे भी कार्य के रूप में माना जाना चाहिए। ऐसा मानने पर वे नश्वर होंगे किन्तु उन्हें नैयायिक अवयवहीन और अनादि मानते हैं। यदि इसका तात्पर्य अवयव से है, जिसके कई अवयव हों तो प्राकाश को भी कार्य मानना होगा किन्तु नैयायिक उसे नित्य मानते हैं।
पुनश्च कार्य का तात्पर्य एक अस्तित्वहीन वस्तु के कारणों की आकस्मिक संगति, जो पहले विद्यमान नहीं थे; नहीं हो सकता है क्योंकि तब हम विश्व-जगत् को कार्य नहीं कह सकेंगे क्योंकि पृथ्वी आदि के तत्त्वों के अणु नित्य भी माने जाते हैं। ___यदि कार्य से तात्पर्य [किसी के द्वारा बनाया हुआ] लिया जाए तो प्राकाश को भी कार्य मानना होगा क्योंकि जब कोई व्यक्ति भूमि-जमीन खोदकर गड्ढा बनाता है तो वह समझता है कि जो गड्ढा उसने खोदा है, उसमें जो प्राकाश है वह उसी ने बनाया है ।
यदि इसका तात्पर्य 'जो परिवर्तनशील हो' लिया जाता है तो यह भी सही नहीं है क्योंकि तब यह तर्क भी
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-२६