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क्या इस चित्रविचित्र विश्व का वस्तुतः कोई 'कर्तानिर्माता-रचयिता' है ?
क्या ईश्वर ही इसका कर्ता है ?
इस विषय में न्यायदर्शन और वैशेषिक दर्शन का मत है कि यह विश्व-जगत् कार्य है। अतः निश्चित रूप से इसका कर्ता कोई बुद्धिमान् ही हो सकता है और वह ईश्वर है। कार्य की उत्पत्ति कारण के बिना सम्भाव्य नहीं। अतः कार्य विश्व-जगत् की उत्पत्ति का कारण असंदिग्ध है। विश्व-जगत् की विचित्रता से भी किसी बुद्धिमान् कर्ता का अनुमान होता है और वह सर्वव्यापी सर्वज्ञ ईश्वर ही है।
जैन दार्शनिक मत के परिप्रेक्ष्य में न्याय-वैशेषिक मत की समीक्षा करनी चाहिए। नैयायिक दर्शन यह कहता है कि-विश्व-जगत् एक कार्य है तो कार्य से उसका तात्पर्य क्या है ? क्या वह यह कहना चाहता है कि कार्य वह इसलिए है कि (१) वह अवयवों से (सावयव) बना है ? या (२) वह किसी अस्तित्वहीन वस्तु के कारणों की आकस्मिक संगति का फल है। या (३) ऐसी वस्तु है जिसे कोई किसी के द्वारा बनाई हुई मानता है। या (४) वह परिवर्तनशील वस्तु है ।
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विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-२५