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॥ॐ ॐ ह्रीं अहं नमः ॐ ॥
॥ ऐं नमः । ॐ ।। सद्गुरुभ्यो नमः । mummmmmmmmmon * विश्वकर्तृत्व-मीमांसा *
ग्रन्थ का सरल हिन्दी भाषानुवाद noromrommon विश्व अत्यन्त विचित्र है। यहाँ जड़ एवं चेतन रूप द्विधा भेद परिलक्षित हैं। चेतनात्मक स्वभाव वाले जंगम तथा अचेतन स्वभावी स्थावर कहलाते हैं।
प्रस्तुत प्रसंग में जिज्ञासावृत्ति का उदय होता है कि यह विश्व-जगत् किसी बुद्धिमान् कर्ता के द्वारा निर्मित है ? अथवा इसका यह स्वरूप स्वभावतः प्रवृत्त है ? यह प्रश्न बारम्बार विचारणीय रहा है और आज भी मनीषियों की प्रखर मनीषा का व्यायाम बना हुआ है। ___ मैं [सुशीलसूरि] परमार्थ तत्त्ववेत्ता न होते हुए भी परमार्थतत्त्वज्ञों (केवलज्ञानियों) के वचनों का पालम्बन लेकर अर्थात् अनुगमन कर यथामति 'विश्वकर्तृत्व मीमांसा' कृति की रचना करना चाहता हूँ।
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-२४