________________
- प्रकाशकीय निवेदन ४
wwwwwwwwwwwwwwwwwws 'विश्वकर्तृत्व-मीमांसा' और 'जगत्कर्तृत्त्व-मीमांसा' ये दोनों लघुग्रन्थ प्रकाशित करते हुए हमें अतीव प्रानन्द की अनुभूति हो रही है। इन दोनों लघुग्रन्थों के कर्ता परमपूज्य शासनसम्राट् समुदाय के सुप्रसिद्ध जैनधर्मदिवाकर, जिनशासनशणगार, तीर्थप्रभावक, नूतन श्रीप्रष्टापद जैनतीर्थ संस्थापक, राजस्थानदीपक, मरुधरदेशोद्धारक, प्रतिष्ठाशिरोमरिण .... पूज्यपाद प्राचार्यदेव श्रीमद् विजयसुशील सूरीश्वरजी म. सा. हैं ।
आपने 'प्रायश्चित्त ज्ञानमञ्जरी' तथा 'प्रायश्चित्त मुक्तावली' इन दोनों लघु ग्रन्थों की रचना करने के बाद, प्रस्तुत दोनों लघु ग्रन्थों की सुन्दर रचना की है। 'विश्वकर्तृत्त्ववाद' सारे विश्व में व्यापक है। विविध दर्शनशास्त्रों में भी इसी का वर्णन विशेष रूप में प्राता है ।
स्याद्वाद-अनेकान्तवाद के सिद्धान्त से तर्कन्युक्ति और दृष्टान्त पूर्वक इन दोनों लघुग्रन्थों में सत्य वस्तु का निदर्शन