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सन्देश सुना जब भरतेश्वर, जा पहुँचे वे गिरिवर ऊपर । 'सिंहनिषद्या' चैत्य बनाया, अति बलिहारी है।
श्री अष्टापद.... पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर में, |
दो, चार, आठ, दस परिकर में। पधराये जिन चौबीस, मूरत प्यारी है ।। श्री अष्टापद....
चक्रवर्ती सगर के पुत्र चढ़े, वन्दन कर हर्षित हुए बड़। सुकृत को सराहा खूब, जो हितकारी है ।। श्री अष्टापद.. . पद-यात्रा कर गौतम-स्वामी, जा पहुँचे अष्टापद नामी । ग्रन्थों में है उल्लेख जो अघहारी है ।। श्री अष्टापद . जो अष्टापद तीरथ स्थापे, कलुषों, कर्मों को नित काटे । अब 'नैन' नमे कर-जोड़, उर में धारी है ॥ श्री अष्टापद ........ 卐 जैनं जयति शासनम् 卐
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