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श्री अष्टापद तीर्थ आरती
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कनकराज पालरेचा 'मयूर', रानी
चौबीस जिनेश्वर आरती की जे,
मनवांछित फल शिवसुख लीजे ॥ १ ॥
चौबीस जिनेश्वर मूरति भराई,
भरत महाराजे अष्टापद जी ॥ २
गुरु गौतम की महिमा न्यारी,
अनन्त लब्धि के गुरु भंडारी ॥ ३ ॥
जो जन नित उठ गौतम ध्यावे,
रोग-शोक नहीं कभी सतावे ॥। ४ ॥
रावण नृपने भक्ति करके,
गोत्र तीर्थंकर यहाँ बाँधा रे ॥ ५ ॥
सहज सरल और शुद्ध भाव से,
भक्ति करे जो मुक्ति पावे ॥ ६ ॥
तीरथ तिरने का स्थल रे,
आरती गावे 'मयूर' भाव से ॥ ७ ॥
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