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सरोवर तट पर रानी नगर में,
अष्टापद तीरथ बने... अष्टापद स्वर्ग सिधारे रूपसागर जी छह अट्टम की तपस्या में... गुरु सुशील सूरीश्वर जी ने, भावना अपनी बताई रे . छठ अष्टापद तीरथ ॥३॥
आचार्यश्री और पंन्यासप्रवर के उपदेशों को माना रे..उप रानी श्री जैनसंघ ने मिलकर योजना सुन्दर बनाई रे भक्ति ग्रष्टापद की करके, मुक्तिपद को प्राप्त करो अष्टापद तीरथ ।। ४ ।।
श्री श्रष्टापद तीर्थ गरबा-गीत
रचयिता - नैनमल विनयचन्द्रजी सुराणा
(तर्ज : मारा दादा ने दरबारे ढोल वागे छे ) श्री अष्टापद तीरथ की महिमा न्यारी है । न्यारी है, कितनी प्यारी है ।। श्री अष्टापद.....
यह अदृश्य तीरथ अलबेला, लगता था देवों का मेला । कोस बत्तीस को ऊँचाई, शोभा भारी है ।। श्री अष्टापद निर्वाण समय पर आदीश्वर, पर्वत पर पहुँचे जगदीश्वर । माघ कृष्ण त्रयोदशी मुक्ति दिन सुखकारी है ॥
श्री अष्टापद
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