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________________ आव्या सूर्यांशु आलंबने, स्व लब्धिथी ए गिरि ए । स्तव्या सर्व जिनने रची, जग चिन्तामरिण थी ए ।। ६ ।। नेमि लावण्यसूरिराजना, पाठक दक्षगणोश ; तस पंन्यास सुशीलगणि, स्तवे सदा ए गिरीश ।। ७ ।। श्री अष्टापद तीर्थ का स्तवन ( नदी किनारे बैठ के श्राश्रो ए रागमां ) प्रभुभक्ति में एकतान होवे, रावण राणी जिन ध्यावे; रागी मन्दोदरी नृत्य करीने, पग पल-पल ठमकावे । ।। प्रभु० १ ।। ' त्रिक योगे इम भक्ति करतां तांत वीरणा तुट जावे ; निज करथी सांधी निज नसने, रावण वीरा चलावे | ॥ प्रभु० ०२ द्रव्य भाव भक्ति जिनवर जी की, खंडित तीहां नवी थावे ; तीर्थंकर पद रावण बाँधी, मनवांछित फल पावे | ।। प्रभु० ३ ।। भक्ति भाव शुभ भावे ; तस सम जे जीव जिनवर आगे, तव जिन जिणंद भक्ति नौका से मुक्ति तीरे जट जावे । , ।। प्रभु ० ४ ।। तपगच्छनायक नेमिसूरीश्वर, अष्टापद प्रभु ध्यावे ; लावण्य- दक्ष-सुशील सेवक, सर्व जिन गुरण गावे ।। प्रभु० ५ ।। (१६)//
SR No.022444
Book TitleVishva Kartutva Mimansa Evam Jagat Kartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Jinottamvijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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