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कूपदृष्टान्तविशदीकरण मूलम् । नमिऊण महावीरं, तिसिंदणमंसियं महाभागं । विसईकरेमि सम्मं. दवथए कूवदिट्टतं ॥ १ ॥ सपरोवयारजणगं, जणाण ज हकूवखणणमाइलैं । अकसिणपवत्तगाणं, तह दवथओ वि विष्णेओ ॥ २ ॥ इसि दुत्ते ज, एयस्स नवगिवित्तिकारेणं । संजोयणं कयं तं, विहिविरहे भत्तिमहिकिच्च ॥ ३ ॥ इहरा कहंचि' वयण, कायवहे कह णु होज्ज पूयाए। न य तारिसो तवस्सी, जंपइ पुवावरविरुद्ध ॥ ४ ॥ सम्भावणे विसद्दो दिटुंतोऽनणुगुणो पयंसेइ । सामण्णाणुमईए सूरी पुण अंसओ बाहं ॥ ५ ॥ दुगयनारीणाया जइवि पमाणीकया हवइ मत्ती । तहवि अजयणाजणिआ हिंसा अन्नाणओ होइ ॥ ६ ॥ सुद्धासुद्धो जोगो, एसो ववहारदसणाभिमओ । णिच्छयणओ उ णिच्छई, जोगज्झवसाणमिस्सत्तं ॥ ७ ॥ जइ (अ)विहिजुयपूयाए, दुट्ठत्त दवमितहिंसाए । तो. आहारविहारप्पमुहं साहूण किमदुटुं ॥८ ।। जावइओ आरंभो तावइयं दूषणंति गणणाए । अप्पत्तं कह जुज्जइ, अप्पंपि विसं च मारेइ ॥ ६ ॥ “कक्वसवेज्जमसायं बन्धइ पाणाइवायओ जीवो" । इय भगवईइ भणियं ता कह पूयाइ सो दोसो ॥१०॥ आरम्भो दि हु एसो हंदि अणारम्भओत्ति णायव्यो । बहविरईए भणअं जमकक्कसवेयणिज्जं तु ॥११॥ धुवबन्धिपावहे उत्तण ण दम्वत्थयंमि हिंसाए । धुवबन्धा जमसज्झा, सत्ते इयरेयरासयया ॥१२ ।।