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________________ प्रदश्यते । द्वितीये तु व्यतिरेकव्याप्तिः । तद्यथा-अन्वयव्याप्तिप्रदर्शनस्थानमन्वयदृष्टान्तः । व्यतिरेकव्याप्तिप्रदर्शनप्रदेशो व्यतिरेकदृष्टान्तः। एवं दृष्टान्तद्वैविध्यात्तद्वचनस्योदाहरणस्यापि द्वैविध्यं बोद्धव्यम् । अनयोचोदाहरणयोरन्यतरप्रयोगेणैव पर्याप्तत्वादितराप्रयोगः। व्याप्तिपूर्वक दृष्टान्तके कहनेको उदाहरण कहते हैं । जैसे कि जो जो धूमवान् होता है वह वह अग्निमान् होता है, जैसे महानस। यह साधर्म्यका (अन्वयरूप) उदाहरण है। जो जो अग्निमान् नहीं होता वह वह धूमवान् भी नहीं होता, जैसे कि तालाव।यह वैधैर्ग्यका (व्यतिरेकरूंप) उदाहरण है । पहले उदाहरणमें हेतुकी अन्वयव्याप्ति दिखाई है, और दूसरेमें व्यतिरेकव्याप्ति । जहांपर अन्वयव्याप्ति दिखाई जाय उसको अन्वयदृष्टान्त कहते हैं, और जहांपर व्यतिरेकव्याप्ति दिखाई जाय उसको व्यतिरेकदृष्टान्त कहते हैं । इस प्रकार दृष्टान्तके दो भेद होनेसे दृष्टान्तके कथनरूप उदाहरणके भी दो भेद समझना चाहिये । इन दोनों उदाहरणोंके प्रयोगों से एकसे ही काम चल सकता है, इस. लिये दोनोंका प्रयोग न करके एकका ही प्रयोग करना चाहिये। दृष्टान्तापेक्षया पक्षहेतोरुपसंहारवचनमुपनयः । तथा चायं धृमवानिति । हेतुपूर्वकं पक्षवचनं निगमनं, तसादग्निमानेवेति । एते पञ्चावयवाः परार्थानुमानप्रयोगस्य । तदन्यतमाभावे वीतरागकथायां विजिगीषुकथायां वा नानुमितिरुदेति" इति नैयायिकानामभिमतम् । १ रसोईघर । २ जहांपर अन्वयव्याप्ति दिखाई जाय उसको साधर्म्य कहते हैं । ३ जहांपर व्यतिरेकव्याप्ति दिखाई जाय उसको वैधर्म्य-दृष्टान्त कहते हैं ।
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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