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________________ है। उत्कृष्ट संवेग, ज्ञान-योग और सत्संगसे यह ज्ञान प्राप्त होता है, अर्थात् पूर्वभव प्रत्यक्ष अनुभवमें प्रा जाता है। - जब तक पूर्वभव गम्य न हो तब तक आत्मा भविष्यकाल के लिए शंकितभावसे धर्म-प्रयत्न किया करती है, और ऐसा सशंकित प्रयत्न योग्य सिद्धि नहीं देता।" पुनर्जन्मकी सिद्धिके लिए श्रीमद्जी ने एक विस्तृत पत्र लिखा है जो 'श्रीमद् राजचन्द्र' ग्रन्थमें प्रकाशित है । पुनर्जन्म सम्बन्धी इनके विचार बड़े गम्भीर और विशेष प्रकारसे मनन करने योग्य हैं । १६ वर्ष की अवस्थामें श्रीमद्जीने एक बड़ी सभामें सौ प्रवधान किए थे, जिसे देखकर उपस्थित जनता दांतों तले उंगली दबाने लगी थी। __ अंग्रेजीके प्रसिद्ध पत्र 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' ने अपने ता• २४ जनवरी १८५७ के कमें श्रीमद्जीके सम्बन्ध में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था 'स्मरण शक्ति तथा मानसिक शक्तिके अद्भ त प्रयोग ।' .. "राजचन्द्र रवजीभाई नामके एक १६ वर्षके युवा हिन्दूकी स्मरणशक्ति तथा मानसिक शक्ति के प्रयोग देखने के लिये गत शनिवार को संध्या समय फरामजी कावसजी इन्स्टीटयू टमें देशी सज्जनों का एक भव्य सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलनके सभापति डाक्टर पिटर्सन नियुक्त हुए थे। भिन्न भिन्न जातियोंके दर्शकोंमें से दस सज्जनोंकी एक समिति संगठित की गई। इन सज्जनोंने दस भाषाओं के छ छ शब्दोंके दस वाक्य बनाकर लिख लिए और अक्रमसे बारी बारीसे सुना दिए। थोड़े ही समय बाद इस हिन्द यवकने दर्शकोंके देखते देखते स्मृतिके बलसे उन सब वाक्योंको क्रमपूर्वक सूना दिया । यवककी इस शक्तिको देखकर उपस्थित मंडली बहुत ही प्रसन्न हुई। . इस युवाकी स्पर्शन इन्द्रिय और मन इन्द्रिय अलौकिक थी। इस परीक्षाके लिये अन्य अन्य प्रकारकी कोई बारह जिल्दं बतलाई गई और उन सबके नाम सुना दिए गए। इसके अांखों पर पट्टी बांधकर इसके हाथों पर जो जो पुस्तकें रखी गई, उन्हें हाथोंसे टटोलकर इस युवकने सब पुस्तकोंके नाम बता दिए। डा० पिटर्सनने इस युवककी इस प्रकार आश्चर्यपूर्ण स्मरणशक्ति और मानसिक शक्तिका विकास देखकर बहुत बहुत धन्यवाद दिया और समाजकी अोरसे सुवर्ण-पदक और साक्षात् सरस्वतीको पदवी प्रदान की गई। उस समय चार्ल्स सारजंट बम्बई हाईकोर्टके चीफ जस्टिस थे। वे श्रीमद्जीकी इस शक्तिसे बहुत ही प्रभावित हुए। सुना जाता है कि सारजंट महोदयने श्रीमद्जीसे इग्लेंड चलनेका प्राग्रह किया था, परन्तु वे कीर्तिसे दूर रहने के कारण चार्ल्स महाशयकी इच्छाके अनुकूल न हुए अर्थात् इग्लेंड न गए॥" इसके अतिरिक्त बम्बई समाचार प्रादि अखबारों में भी इनके शतावधानके समाचार प्रकाशित हए थे । बाद में शतावधान के प्रयोगोंको आत्मचिन्तनमें अन्तरायरूप मानकर उनका करना बन्द कर दिया था। इससे सहजमें ही अनुमान किया जा सकता है कि वे कीर्ति मादिसे कितने निरपेक्ष
SR No.022412
Book TitlePurusharth Siddhyupay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1977
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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