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________________ प्रात्माकी अोर लक्ष्य नहीं देते उसी आत्माकी अोर श्रीमद्जीका बाल्यकालसे लक्ष्य तीव्र था । प्रात्माके अमरत्व तथा क्षणिकत्वके विच र भी कुछ कम नहीं किये थे। कुलश्रद्धासे जैन धर्मको अंगीकार नहीं किया था, लेकिन अपने अनुभवके बलपर उसे सत्य सिद्ध करके अपनाया था। जैन धर्मके सत्य सिद्धान्तोंको श्रीमद्जीने अपने जीवन में उतारा था और मुमुक्षमोंको भी तदनुरूप बननेका बोध देते थे । वर्तमान युगमें ऐसे महात्माका आविर्भाव समाजके लिये सौभाग्यकी बात है। ये मनमतान्तर में मध्यस्थ थे। आपको जातिस्मरण ज्ञान था अर्थात् पूर्वभव जानते थे। इस सम्बन्ध में मुमुक्षुभाई पदमशी भाईने एक बार उनसे पूछा था और उसका स्पष्टीकरण स्वयं उन्होंने अपने मुख से किया था। पाठकों की जानकारी के लिये उसे यहां दे देना योग्य समझता हूं। पदमशीभाईने पूछा-"प्रापको जातिस्मरण-ज्ञान कब और कैसे हुया ?" श्रीमद्जीने उत्तर दिया-"जब मेरी उम्र सात वर्षकी थी, उस समय यवाणिया में अमीनन्द नामके एक सद्गृहस्थ रहते थे। वे पूरे लम्बे-चौड़े, सुन्दर और गुणवान थे। उनका मेरे ऊपर खूब प्रेम था। एक दिन सर्पके काट खानेसे उनका तुरन्त देहान्त हो गया। प्रासपासके मनुष्योंके मुखसे इस बातको सुनकर मैं अपने दादाके पास दौड़ा पाया। मरण क्या चीज है ? इस बातका मैं नहीं जानता था, इसलिये मैंने दादा से कहा-दादा ! अमीचन्द मर गए क्या ? मेरे दादाने उस समय विचारा कि यह बामक है. मरणकी बात करनेसे डर जायगा, इसलिए उन्होंने-जा भोजन करले, यों कहकर मेरी बातको टालनेका प्रयत्न किया। 'मरण' शब्द उस छोटे जीवन में मैंने प्रथम बार ही सुना था। मरण क्या वस्तु है, यह जानने की मुझे तीव्र आकांक्षा थी। बारम्बार मैं पूर्वोक्त प्रश्न करता रहा । अन्त में वे बोले-तेरा कहना सत्य है अर्थात् अमीचन्द मर गए हैं। मैंने अाश्चर्यपूर्वक पूछा-मरण क्या चीज है ! दादाने कहा-शरीरमें से जीव निकल गया है और अब वह हलन-चलन आदि कुछ भी क्रिया नहीं कर सकता, खाना-पीना भी नहीं कर सकता। इसलिए अब इसको तालाबके समीपके श्मशानमें जला पायेंगे। ____ मैं थोड़ी देर इधर-उधर छिपा रहा। बादमें तालाब पर जा पहुंचा। तट पर दो शाखावाला एक बबूलका पेड़ था, उसपर चढ़कर मैं सामनेका सब दृश्य देखने लगा। विता जोरोंसे जल रही थी, बहुतसे आदमी उसको घेरकर बैठे हुए थे। यह सब देखकर मुझे विचार प्राया-मनुष्यको जलाने में कितनी करता ! यह सब क्या ? इत्यादि विचारोंसे प्रात्म-पट दूर हो गया।" ___ एक विद्वानने श्रीमद्जीको, पूर्व जन्मके सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करने के लिए लिखा था। उसके उत्तरमें उन्होंने जो कुछ लिखा था, वह निम्न प्रकार है "कितने ही निर्णयोंसे मैं यह मानता हूं कि, इस कालमें भी कोई काई महात्मा पहले भवको जातिस्मरण ज्ञानसे जान सकते हैं, और यह जानना कल्पित नहीं; परन्तु सम्यक् ( यथार्थ ) होता
SR No.022412
Book TitlePurusharth Siddhyupay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1977
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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