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________________ श्लोक १८६-१६४ . पुरुषार्थसिद्धघु पायः अनवेक्षिताप्रमानितमादानं' संस्तरस्तथोत्सर्गः। स्मृत्यनुपस्थानमनादरश्च पञ्चोपवासस्य ॥१२॥ अन्वयाथों-[अनवेक्षिताप्रमाजितमादानं ] विना देखे और विना शोधे ग्रहण करना [ संस्तरः ] बिछौना बिछाना, [ तथा ] तथा [ उत्सर्गः ] मल-मूत्रत्याग करना [ स्मृत्यनुपस्थानम् ] उपवासकी विधि भूल जाना [ च ] और [ अनादरः ] अनादर ये [ उपवासस्य ] उपवासके [पञ्च] पांच अतीचार हैं। भावार्थ-प्रोषधोपवास व्रतमें पूजनको सामग्री प्रादि विना शोघे तथा विना झाड़े हुए लेनेको अनवेक्षिताप्रमाजितादान, इसी प्रकार देखे विना झाड़े विना बिछौना करनेको अनवेक्षिताप्रमाजितसंस्तर, देखी हुई तथा शोबी हुई भूमिके विना मल-मूत्रोत्सर्ग करनेको प्रनवेक्षिताप्रमाजितोत्सर्ग, प्रोषधविधिके विधान भूल जानेको स्मृत्यनुपस्थान और भूख प्यासके क्लेशसे उपवासमें उत्साहहीनता होनेको अनादर कहते हैं। प्राहो हि सचित्तः सचित्तमिश्रः सचित्तसंबन्धः । दुष्पक्वोऽभिषवोपि च पञ्चामी षष्ठशीलस्य ॥१३॥ अन्वयाथों--( हि ] निश्चय करके [ सचित्तः प्राहारः ] सचित्ताहार, [ सचित्तमिश्रः] सचित-मिश्राहार, [ सचित्तसम्बन्धः ] सचित्तसंबंधाहार. [ दुष्पक्वः ] दुष्पक्वाहार [ च अपि ] और [ अभिषवः ] अभिषवाहार, [ प्रमी । ये [ पञ्च ] पांच प्रतीचार [षष्ठशीलस्य] छ8 शील अर्थात् भोगोपभोगपरिमाणवतके हैं। ____भावार्थ-चेतनायुक्त सजीव प्राहारको सचित्ताहार, सचित्तसे मिले हुए प्राहारको (जो पृथक् न किया जा सके ), सचित्तमिश्राहार, सचित्तसे सम्बन्ध किये हुए अर्थात् स्पर्श किये आहारकी सचित्तसम्बन्धाहार, कष्टसे हजम हो सके ऐसे गरिष्ठ प्राहारको दुष्पक्वाहार', और दुग्ध घृतादि रस मिश्रित कामोत्पादक आहारको अभिषवाहार' कहते हैं। इनके करनेसे भोगोपभोग परिमाणवतका एकदेश भंग होता है, अर्थात् उक्त व्रतके ये पाँच प्रतीचार हैं। परदातृव्यपदेशः सचित्तनिक्षेपतत्पिधाने च। कालस्यातिक्रमणं मात्सय्यं चेत्यतिथिवाने ॥१६॥ अन्वयायौ -[ परदातृध्यपदेशः ] परदातृव्यपदेश, [ सचित्तनिक्षेपतत्पिधाने च ] सचित्त १-अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थानानि (तत्त्वार्थ सू० म० ७, सू० ३४) २-सचित्तसंबन्धसन्मिश्राभिषवदुःपक्काहारा (त. म०७, सू० ३५)। ३-भोगोपभोगपरिमाणवतके सचित्ताहार प्रतीचार है, परन्तु सचित्तत्यागवतीके पनाचार है। ४-दुष्पक्काहारका पाचन यथार्थ न होकर वातादि रोग प्रकोप तथा उदर-पीड़ा होती है, जिससे मसंयमकी वृद्धि होती है। ५-पौष्टिक आहारसे इन्द्रियमद बढ़ते हैं। ६-सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः (त.प्र. ७, सू. ३६)।
SR No.022412
Book TitlePurusharth Siddhyupay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1977
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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