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________________ ८२ श्रीमद् रामचन्द्रजेनशास्त्रमालायाम् [ ४-दिग्वत, देशव्रत, अनर्थदंडके सामायिकके परिमाण किये हुए क्षेत्रको लोभादिवश वृद्धि करना और [ स्मृत्यन्तरस्य ] स्मृतिके अतिरिक्त क्षेत्रकी मर्यादाका [माधानम् ] धारण करना, प्रर्थात् याद न रखना [ इति ] इस प्रकार [पञ्च ] पांच प्रतीचार [ प्रथमशीलस्य ] प्रथम शीलके अर्थात् दिग्वतके [ गदिताः । कहे गये हैं । प्रेष्यस्य' संप्रयोजनमानयनं शब्दरूपविनिपाती। क्षेपोऽपि पुद्गलानां द्वितीयशीलस्य पञ्चेति ॥१८६।। अन्वयाथों-[ प्रेष्यस्य संप्रयोजनम् ] प्रमाण किये हुए क्षेत्रके बाहिर अन्य पुरुषको भेज देना, [पानयनं ] वहांसे किसी वस्तुका मंगाना, [शब्दरूपविनिपातो ] शब्द सुनाना, रूप दिखाकर इशारे करना और [ पुद्गलानां ] कंकड़ पत्थरादि पुद्गलोंका [क्षेपोऽपि ] फेंकना भी [इति ] इस प्रकार [पञ्च ] पांच प्रतीचार [ द्वितीयशीलस्य ] दूसरे शीलके अर्थात् देशव्रतके कहे गये हैं। कन्दर्पः कौत्कुच्यं भोगानर्थक्यमपि च मौखर्यम् । असमीक्षिताधिकरणं तृतीयशीलस्य पञ्चेति ।।१६०॥ मन्वयाथों-[कन्दर्पः ] कन्दर्प या कामके वचन कहना, [ कौत्कुच्यं ] मंडरूप अयुक्त कायचेष्टा, [ भोगानर्थक्यम् ] भोगोपभोगके पदार्थो का अनर्थक्य, [ मौखर्यम् ] मुखरता या वाचालता [चौर [ असमीक्षिताधिकरणं ] विना विचारे कार्यका करना [इति] इस प्रकार [तृतीयशीलस्य] तीसरे शील अर्थात् अनर्थदण्डविरति व्रतके [ अपि ] भी [ पञ्च ] पांच प्रतीचार हैं । भावार्थ-राग प्रधिकतासे निष्प्रयोजन अशिष्ट बोलनेको कंदपं, विकाररूप दूषित कायचेष्टा बनानेको कौत्कुच्य, भोगोपभोगके पदार्थ बहुत मोल देकर लेनेको भोगानर्थव्य, व्यर्थ ही यद्वा तद्वा बकनेको मौवर्ष, और प्रयोजन से अधिक विना विचारे कार्य करनेको प्रममौक्षिताधिकरण कहते हैं । बचतमनःकायानां' दुःप्रणिधानं त्वनादरश्चैव । स्मृत्यनुप्रस्थानयुताः पञ्चेति चतुर्थशोलस्य ॥१६॥ अन्वयार्थी -[ स्मृत्यनुपस्थानयुताः ] स्मृत्यनुपस्थानसहित, [वचनमनःकायानां] वचन, मन और कायकी [ दुःप्रणिपानं ] खोटी प्रवृत्ति, [ तु ] और [ अनावरः ] अनादर [ इति ] इस प्रकार [ चतुर्थशीलस्य ] चौथे शील अर्थात् सामायिक व्रतके [ पञ्च ] पांच [ एव ] ही अतीचार हैं । भावार्थ-- समायिक पढ़ते समय अशुद्ध पाठके उच्चारण करनेको वचनदुःप्रणिधान, अन्यपदार्थोकी अोर मनके चलायमान करनेको मनोदुःप्रणिधान, शरीरके चलाचलरूप करनेको कायदुःप्रणिधान, सामायिक क्रिया उत्साहहीन होकर करनेको अनादर और 'यह पाठ मैंने पढ़ा कि नहीं ऐसी मंशयरूप विस्मृतिको स्मृत्यनुपस्थान कहते हैं । १-पानयमप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः (त.०७, सू० ३१)२-कन्दर्पकौत्कुन्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि (त०अ०७,तू. ३२)। ३-योगदुःप्रणिधानानादरस्मृत्यपस्थानानि (त०म०७,सू०३३)
SR No.022412
Book TitlePurusharth Siddhyupay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1977
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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