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अर्थ- सूने घर में रहना, छोड़े हुए घर में रहना, दूसरे को न रोकना, शुद्ध आहार लेना, अपने धर्म वालों से झगड़ा न करना ये अचौर्य महाव्रत की ५ भावना हैं ||३४|
गाथा - महिलालोयण पुव्वर इसरण ससत्तव सहि विकहाहिं । पुट्टियर सेहिं विरोभावण पंचावि तुरयम्मि ||३५|| छाया - महिलालोकनपूर्वरतिस्मरणसंसक्तवसतिविकथामिः । पौष्टिक रसः विरतः भावनाः पंचापि तुर्ये ॥ ३७५॥ |
अर्थ - स्त्रियों को रागभाव से
देखना, पहले भोगे हुए भोगों को याद करना, बस्ती में रहना, खियों की कथा कहना, पौष्टिक भोजन करना इन पांचों विकार भावों का त्याग करना सो ब्रह्मचर्य महाव्रत की पांच भावनाएं हैं ||३५||
गाथा - - अपरिग्गह समगुणेसु सद्दपरि सरसरूवगंधेसु । रायोसाईगं परिहारो भावणा होंति ॥३६॥
छाया - अपरिग्रहे समनोज्ञेषु शब्दस्पर्शर सरूपगन्धेषु । रागद्वेषदीनां परिहारो भावनाः भवन्ति ॥ ३६ ॥
अर्थ - इष्ट और अनिष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध इन पांच इन्द्रियों के विषयों में रागद्वेष का त्याग करना ये परिग्रह त्याग महाव्रत को पांच भावना हैं ॥३६॥
गाथा - इरिया भासा एसा जा सा श्रादारण चैव शिक्खेवो । संजमसोहिरिणमित्ते खंति जिरणा पंच समिदीओ ॥३७॥
छाया - ईर्ष्या भाषा एषरणा या सा आदानं चैव निक्षेपः । संयमशोधिनिमित्तं ख्यान्ति जिना: पंच समितीः ॥३७॥
भाषा समिति है ।
अर्थ- प्रमाद रहित सावधानी से आगे चार हाथ जमीन देखकर चलना ईय समिति है। हितकारी परिमित प्रियवचन बोलना दोष और अन्तराय टालकर कुलीन श्रावक के घर शुद्ध समिति है । शास्त्रपीछी कमण्डलु आदि देखभाल कर रखना व उठाना
आहार लेना एषणा