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________________ [२८] गाथा-- साहति ज महल्ला आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं । जं च महल्लाणि तदो महव्वया इत्तहे याई ॥३१॥ छाया- साधयन्ति यन्महान्तः आचरितं यत् महत्पूर्वैः। यच्च महान्ति ततः महाव्रतानि एतस्माद्धेतोः एतानि ॥ ३१॥ .. अर्थ-जिनको महापुरुष आचरण करते हैं, जो पहले महापुरुषों से आचरण किये गये हैं और जो स्वयं भी महान् है, इस लिये ये पांच महाव्रत कहलाते हैं ॥३१॥ गाथा- वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्खेवो । अवलोयभोयणाए अहिंसए भावणा होति ॥३२॥ छाया- वचोगुप्तिः मनोगुप्तिः ईर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः । __ अवलोक्यभोजनेन अहिंसायाः भावना भवन्ति ।। ३२ ॥ अर्थ-वचन को वश में करना सो वचन गुप्ति है । मन को वश में करना सो मनोगुप्ति है। चार हाथ आगे भूमि देख कर चलना सो ईर्यासमिति है । पीछी कमण्डलु आदि को देखभाल कर रखना और उठाना सो आदान निक्षेपण समिति है। देखभाल कर विधिपूर्वक शुद्ध आहार करना सो . एषणा समिति है । ये अहिंसा महाव्रत को ५ भावना है ॥ ३२ ॥ गाथा-कोहभयहासलोहा मोहाविवरीयभावणा चेव । विदियस्स भावणाए ए पंचेव य तहा होति ॥३३॥ छाया-क्रोधभयहास्यलोभमोहविपरीतभावनाः चैव। . द्वितीयस्य भावना इमाः पंचैव च तथा भवन्ति ॥३३॥ अर्थ-क्रोध का त्याग, भय का त्याग, हंसी का त्याग, लोभ का त्याग और मिथ्या स्वभाव का त्याग ये सत्य महाव्रत की ५ भावना हैं ॥३३॥ गाथा-सुण्णायारणिवासो विमोचितावास ज परोधंच । एसणसुद्धिसउत्तं साहम्मीसंविसंवादो ॥३४॥ या-शून्यागारनिवासः विमोचितावासः यत्परोधंच । एषणाशुद्धिसहितं साधर्मिसमविसंवादः ॥३४॥
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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