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________________ [ ३० ] आदान निक्षेपण समिति है। जन्तुरहित स्थान में मलमूत्र करना प्रतिष्ठापना समिति है। ये पांच समिति संयम की शुद्धता के लिये कारण हैं, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् कहते हैं ॥३७॥ गाथा-भव्वजणबोहणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहिं जह भणियं । णाणं गाण सरूवं अप्पाणं तं वियाणे हि ॥३८॥ छाया-भव्यजनबोधनार्थं जिनमा जिनवरैः यथाभणितं । ज्ञानं ज्ञानस्वरूपं श्रात्मानं तं विजानीहि ॥३८॥" अर्थ-जिन भगवान् ने जैन मार्ग में भव्य जीवों को समझाने के लिये जैसा ज्ञान और ज्ञान का स्वरूप कहा है उस ज्ञान स्वरूप आत्मा को हे भव्य तू भलीभांति जान ॥३॥ गाथा-जीवाजीवविभत्ती जो जाणइ सो हवेइ सण्णाणी। .... रायादिदोसरहियो जिणसासण मोक्खमग्गुत्ति ॥३६॥ छाया-जीवाजीवविभक्तं यः जानाति स भवेत् सज्ज्ञानः । रागादिदोषरहितः जिनशासने. मोक्षमार्ग इति ॥३६॥ अर्थ-जो पुरुष जीव और अजीव का भेद जानता है वह सम्यग्ज्ञानी होता है तथा रागद्वेषादि दोषों से रहित होता है सो जिनशासन में मोक्षमार्ग.. बताया गया है ॥३॥ गाथा-दंसणणाणचरित्तं तिएिणवि जाणेह परमसद्धाए। जं जाणिऊण जोई अइरेण लहंति णिव्वाणं ॥४०॥ छाया-दर्शनज्ञानचारित्रं त्रीण्यपि जानीहि परमश्रद्धया। यत् ज्ञात्वा योगिनः अचिरेण लभन्ते निर्वाणम् ॥४०॥ अर्थ हे भव्य । तू दर्शन ज्ञान चारित्र इन तीनों गुणों को अत्यन्त श्रद्धापूर्वक जान । जिसको जानकर योगी लोग शीघ्र ही निर्वाण प्राप्त करते हैं ॥४०॥ .. गाथा-पाऊण णाणसलिलं हिम्मलसुविसुद्धभावसंजुत्ता। . हुँति सिवालयवासी तिहुवणचूडामणी सिद्धा ॥ ४१ ॥
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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