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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । पल्लस्स संखभागं संखगुणूणं असंखगुणहीणं । बंधोसरणे पलं पल्लासंखं असंखवस्संति ॥ ४१६ ॥
पल्यस्य संख्यभाग संख्यगुणोनमसंख्यगुणहीनम् ।
बंधापसरणे पल्यं पल्यासंख्यं असंख्यवर्षमिति ॥ ४१६ ॥ अर्थ-पल्यका संख्यातवां भाग, पूर्वबन्धसे संख्यातगुणा कम, असंख्यातगुणा घटता प्रमाण लिये स्थितिबन्धापसरणोंकर पल्यमात्र, पल्यका असंख्यातवां भागमात्र और असंख्यातवर्षमात्र स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१६ ॥ इसीप्रकार स्थितिसत्त्व जानना।
एवं पलं जादा वीसीया तीसिया य मोहो य । पल्लासंखं च कमे बंधेण य वीसियतियाओ ॥ ४१७ ॥ एवं पल्यं जाते वीसिया तीसिया च मोहश्च ।
पल्यासंख्यं च क्रमेण बंधेन च वीसियत्रिकाः ॥ ४१७ ॥ अर्थ-इसप्रकार वीसियोंका पल्यमात्र स्थितिबन्ध होनेपर वीसिय तीसिय मोह-इनका पल्यके असंख्यातकें भाग क्रमसे पूर्वसे संख्यातगुणा घटता स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१७॥
उदधिसहस्सपुधत्तं अन्भंतरदो दु सदसहस्सस्स । तकाले ठिदिसतो आउगवजाण कम्माणं ॥ ४१८ ॥ उदधिसहस्रपृथक्त्वं अभ्यंतरतस्तु शतसहस्रस्य ।
तत्काले स्थितिसत्त्वं आयुर्वर्जितानां कर्मणाम् ॥ ४१८ ॥ अर्थ-उस मोहनीयके बन्ध होनेके वाद आयुके विना अन्यकर्मोंका स्थितिसत्त्व पृथक्त्वहजार सागर प्रमाण होता है । यहां पृथक्त्वहजार शब्दकर लक्षके अंदर यथासम्भव प्रमाण जानना । पहले पृथक्त्व लक्ष सागरका स्थितिसत्त्व था वह कांडकघातकर यहां इतना रहा है ॥ ४१८॥
मोहगपल्लासंखठिदिबंधसहस्सगेसु तीदेसु।। मोहो तीसिय हेट्टा असंखगुणहीणयं होदि ॥ ४१९ ॥
मोहगपल्यासंख्यस्थितिबंधसहस्रकेष्वतीतेषु ।
मोहः तीसियं अधस्तना असंख्यगुणहीनकं भवति ॥ ४१९ ॥ अर्थ-मोहका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध होने के समयमें मोह तीसिय वीसिय कोका असंख्यातगुणाकम स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१९ ॥
तेत्तियमेत्ते बंधे समतीदे वीसियाण हेहादुः । एकसराहे मोहे असंखगुणहीणयं होदि ॥ ४२० ॥