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लब्धिसारः ।
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प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये पूर्वकी तरह गुणश्रेणी और गुणसंक्रम होता है ॥ ४११ ॥ इसतरह तीनकरण कहे ।
आगे स्थितिबन्धापरणका क्रम कहते हैं;
ठिदिबंध सहस्सगदे संखेज्जा बादरे गदा भागा । तत्थासण्णिस्सद्विदिसरिसं ठिदिबंधणं होदि ॥ ४१२ ॥ स्थितिबंधसहस्रगते संख्येया बादरे गता भागाः ।
तत्रासंज्ञिनः स्थितिसदृशं स्थितिबंधनं भवति ॥ ४१२ ॥
अर्थ — इसप्रकार संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर अनिवृत्तिकरणकाल के संख्यात बहुभाग वीतजानेपर एक भाग शेष रहनेके अवसर में असंज्ञीपंचेंद्रीकी स्थिति के समान स्थितिबंध होता है ॥ ४९२ ॥
ठिदिबंध सह स्सगदे पत्तेयं चरतियविएहंदी |
ठिदिबंध समं होदि हु ठिदिबंधमणुक्कमेणेव ॥ ४१३ ॥ स्थितिबंधसहस्रगते प्रत्येकं चतुस्त्रिद्विएकेंद्री ।
स्थितिबंधसमं भवति हि स्थितिबंधमनुक्रमेणैव ॥ ४१३ ॥
अर्थ – पूर्वोक्त क्रम संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर क्रमसे चौइंद्री तेइंद्री दोइंद्री एकेंद्रीके स्थितिबन्धके समान सौ पचास पच्चीस एकसागर प्रमाण कर्मका स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१३ ॥
एइंदियदीदो संखसहस्से गये हु ठिदिबंधे ।
पले दिवदुगं ठिदिबंधो वीसियतियाणं ॥ ४१४ ॥ एकेंद्रियस्थितितः संख्यसहस्रे गते हि स्थितिबंधे ।
पल्यैकद्व्यर्धद्विकं स्थितिबंध: वीसियत्रिकाणाम् ॥ ४१४ ॥
अर्थ – एकेंद्रियसमान स्थितिबंध से परे संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीत जानेपर वीसयोंका एकपल्य तीसियोंका डेढपल्य मोहका दो पल्यमात्र स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१४ ॥ तक्काले ठिदिसंत लक्खपुधत्तं तु होदि उवहीणं । बंधोरणा वंधी ठिदिखंडं संतमोसरदि ॥ ४१५ ॥ तत्काले स्थितिसत्त्वं लक्ष्यपृथक्वं तु भवति उदधीनाम् । बंधापरणं बंधः स्थितिखंडं सत्त्वमपसरति ।। ४१५ ।।
अर्थ — उस समय कर्मोंका स्थितिसत्त्व पृथक्त्वलक्षसागर प्रमाण होता है । वह अनिवृत्तिकरण के प्रथमसमयके स्थितिबन्ध से संख्यातगुणा कम जानना । और स्थितिबन्धापसरसे स्थितिबन्ध घटता है तथा स्थितिकांडकोंसे स्थितिसत्त्व घटता है ॥ ४१५ ॥