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लब्धिसारः। ठिदिखंडयं तु चरिमं बंधोसरणट्ठिदी य पल्लद्धं । पलं चडपडबादरपढमो चरिमो य ठिदिबंधो ॥ ३८५ ॥ स्थितिखंडकं तु चरमं बंधापसरणस्थिती च पल्यार्ध ।
पल्यं चटपतद्वादरप्रथमः चरमश्च स्थितिबंधः ॥ ३८५ ॥ अर्थ-उससे अन्तका स्थितिखण्ड संख्यातगुणा है। उससे स्थितिबन्धापसरणोंकर उत्पन्न हुए पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध वे सभी क्रमसे संख्यातगुणे हैं। उससे चढनेवालेके अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमें सम्भव स्थितिबन्ध संख्यातगुणे हैं वे पृथक्त्वलक्षसागर प्रमाण हैं । उससे उतरनेवालेके अनिवृत्तिकरणके अन्तसमयमें सम्भव स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ३८५ ॥
चडपडअपुत्वपढमो चरिमो ठिदिबंधओ य पडणस्स । तच्चरिमं ठिदिसतं संखेजगुणकमा अट्ठ ॥ ३८६ ॥
चटपतदपूर्वप्रथमः चरमः स्थितिबंधकश्च पतनस्य ।
तच्चरमं स्थितिसत्त्वं संख्येयगुणक्रमं अष्ट ।। ३८६ ॥ अर्थ-उससे चढनेवाले अपूर्वकरणके प्रथम समयमें स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है वह अंतःकोटाकोटि सागर मात्र है। उससे पड़नेवाले अपूर्वकरणके अन्तसमयमें स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे पड़नेवालेके अपूर्वकरणके अंतसमयमें स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है ॥ ३८६ ॥
तप्पढमटिदिसंतं पडिवडअणियहिचरिमठिदिसत्तं । अहियकमा चलबादरपढमहिदिसत्तयं तु संखगुण ॥ ३८७ ॥ तत्प्रथमस्थितिसत्त्वं प्रतिपतदनिवृत्तिचरमस्थितिसत्त्वं ।
अधिकक्रमं चटवादरप्रथमस्थितिसत्त्वकं तु संख्यगुणम् ॥ ३८७ ॥ अर्थ-उससे पड़नेवालेके अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है । उससे पड़नेवाले अनिवृत्ति करणके अंतसमयमें स्थितिसत्त्व एक समयकर अधिक है। उससे चढनेवाले अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमें स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है क्योंकि इसके अब भी अनिवृत्तिकरणके परिणामोंसे स्थितिसत्त्वका खंडन सम्भवता है ॥ ३८७ ॥
चडमाणअपुवस्स य चरिमठिदिसत्तयं विसेसहियं । तस्सेव य पढमहिदिसत्तं संखेजसंगुणियं ॥ ३८८ ॥ चटदपूर्वस्य च चरमस्थितिसत्त्वकं विशेषाधिकम् । तस्यैव च प्रथमस्थितिसत्त्वं संख्येयसंगुणितम् ॥ ३८८ ॥