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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । चडपडणमोहपढमं चरिमं तु तहा तिघादयादीणं । संखेजवस्सबंधो संखेजगुणकमो छण्हं ॥ ३८१ ॥
चटपतनमोहप्रथमं चरमं तु तथा त्रिघातकादीनाम् ।
संख्येयवर्षबंधः संख्येयगुणक्रमः षण्णाम् ॥ ३८१ ॥ अर्थ-चढनेवालेके मोहनीयका प्रथमस्थितिवन्ध -संख्यातगुणा है । उससे उतरनेवालेके मोहका अन्तस्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे चढनेवालेके तीन घातियाओंका प्रथ. मस्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे उतरनेवालेके उनके अन्तका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । वह संख्यातहजार वर्षमात्र है ॥ ३८१ ॥
चडपडणमोहचरिमं पढमं तु तहा तिघादियादीणं । असंखेजवस्सबंधो संखेजगुणकमो छण्हं ॥ ३८२ ॥
चटपतनमोहचरमं प्रथमं तु तथा त्रिघातकादीनाम् ।
__ असंख्येयवर्षबंधः संख्येयगुणक्रमः षण्णाम् ॥ ३८२ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके मोहनीयका असंख्यात वर्षमात्र अन्तस्थितिबन्ध है वह असंख्यातगुणा है । उससे उतरनेवालेके मोहका प्रथमस्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । उससे चढनेवालेके तीन घातियाओंका अन्तस्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । उससे उतरनेवालेके तीन घातियाओंका प्रथमस्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है वह पल्यका असंख्यातवां भागमात्र है ॥ ३८२॥
चडणे णामदुगाणं पढमो पलिदोवमस्स संखेजो। भागो ठिदिस्स बंधो हेडिल्लादो असंखगुणो ॥ ३८३ ॥
चटने नामद्विकयोः प्रथमः पलितोपमस्यासंख्येयः ।
भागः स्थितेबंधो अधस्तनादसंख्यगुणः ॥ ३८३ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके नामगोत्रका पहला स्थितिबन्ध पल्यके असंख्यातवें भागमात्र है वह नीचेके तीनघातियाओंके स्थितिबन्धसे असंख्यातगुणा है ॥ ३८३ ॥
तीसियचउण्ह पढमो पलिदोवमसंखभागठिदिबंधो। मोहस्सवि दोण्णि पदा विसेसअहियकमा होंति ॥ ३८४ ॥
तीसियचतुर्णा प्रथमः पलितोपमासंख्यभागस्थितिबंधः।
मोहस्यापि द्वे पदे विशेषाधिकक्रमा भवंति ॥ ३८४ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके तीसियचतुष्कका प्रथम स्थितिबन्ध विशेष अधिक है वह भी पल्यके असंख्यातवें भागमात्र है। उससे चढनेवालेके मोहका चालीसियस्थितिबन्ध उसीके त्रिभागमात्रं विशेषकर अधिक है ॥ ३८४ ॥