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लब्धिसारः। चटतः च नामगोत्रजघन्यस्थितीनां बंधश्च ।
त्रयोदशपदेषु क्रमशः संख्येन च भवंति गुणितक्रमाः॥ ३७७ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके नामगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है वह सोलहमुहूर्त है । वह अपनी २ व्युच्छित्तिके अन्तसमयमें जानना । और वह तेरह स्थानों में क्रमसे संख्यातगुणा है ॥ ३७७ ॥
चलतदियअवरबंधं पडणामागोदअवरठिदिबंधो। पडतदियस्स य अवरं तिण्णि पदा होंति अहियकमा ॥ ३७८ ॥
चटतृतीयावरबंध पतन्नामगोत्रावरस्थितिबंधः ।
चटत्तृतीयस्य च अवरं त्रीणि पदानि भवंति अधिकक्रमाणि ॥ ३७८ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके वेदनीयका जघन्यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है वह चौवीस मुहूर्तमात्र है । उससे पड़नेवालेके नाम गोत्रका जघन्यबन्ध विशेष अधिक है वह बत्तीसमुहूर्त है । उससे पड़नेवालेके वेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है वह अड़तालीस मुहूर्तमात्र है ॥ ३७८ ॥
चडमायमाणकोहो मासादीद्गुण अवरठिदिबंधो। पडणे ताणं दुगुणं सोलसवस्साणि चलणपुरिसस्स ॥ ३७९ ॥
चटमायामानक्रोधो मासादिद्विगुणोवरस्थितिबंधः ।
पतने तेषां द्विगुणं षोडशवर्षाणि चटनपुरुषस्य ॥ ३७९ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके संज्वलन मायाका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है वह एकमासमात्र है। उससे मानका जघन्यस्थितिबन्ध दूना है । उससे क्रोधका जघन्य स्थितिबंध दूना है। और उतरनेवालेके उन्हीं मायादिकोंका जघन्यस्थितिबन्ध चढनेवालेसे दूना है । वह मायाका दो मास मानका चारमास क्रोधका आठमास जानना । चढनेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध सोलह वर्षमात्र है ॥ ३७९॥
पडणस्स तस्स दुगुणं संजलणाणं तु तत्थ दुट्ठाणे। बत्तीसं चउसही वस्सपमाणेण ठिदिबंधो ॥ ३८०॥ पतनस्य तस्य द्विगुणं संज्वलनानां तु तत्र द्विस्थाने ।
द्वात्रिंशत् चतुःषष्ठिः वर्षप्रमाणेन स्थितिबंधः ॥ ३८० ॥ अर्थ-पड़नेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध उससे दूना बत्तीस वर्ष है । और उसकालमें संज्वलन चौकड़ीका स्थितिबन्ध चढनेवालेके बत्तीस वर्ष उतरनेवालेके चैंसठवर्षमात्र है ॥ ३८०॥
ल.सा. १४