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________________ शब्द के साथ प्रयोग हो सकता है। व्यक्ति न अलीक है और न तो शाश्वत है अतः उसमें भी किसी देश-काल का सम्बन्ध और किसी देश-काल का असम्बन्ध होने से अस्ति-नास्ति शब्दों के साथ प्रयुज्यमानता है किन्तु उसमें अभावैकरूपता न होने से साध्य नहीं है, अतः उसमें हेतु साध्य का व्यभिचारी हो जायगा। ___ उक्त न्यायों से जलत्वादि धर्मों में अजलादिव्यावृत्ति-रूपता के साधन में कथित दोषों से अतिरिक्त दोष यह भी है कि यदि अन्यव्यावृत्तिरूप जलत्वादि को पक्ष करके अन्य-व्यावृत्तिरूपता का साधन किया जायगा तो सिद्धसाधन होगा, और यदि विधिरूप जलत्वादि को पक्ष करके अन्यव्यावृत्ति-रूपता का साधन किया जायगा, तो बौद्धमत में विधिरूप जलत्वादि की सत्ता न मानने के कारण आश्रयासिद्धि होगी। यदि न्यायमत से उसकी सिद्धता मान कर पक्ष का उपन्यास किया जायगा, तो बाध होगा, क्योंकि विधिस्वरूप वस्तु में व्यावृत्तिमात्ररूपता नहीं हो सकती। अनुगत - एकाकार व्यवहार के अनुरोध से भी भावमात्र की क्षणभङ्गुरता के आग्रह का त्याग करना आवश्यक है। विभिन्न देश और विभिन्न काल के घटों में "यह घट है" इस अनुगत व्यवहार का होना सभी को मान्य है, यदि उनमें किसी एकरूप की स्थिति न मानी जायगी तो जैसे घट और पट में उक्त व्यवहार नहीं होता वैसे ही दो घटों में भी उक्त व्यवहार न होगा। अतः यह मानना अत्यावश्यक है कि भिन्न भिन्न स्थानों और समयों में जितने घट हैं उन सभी में घटत्वनामक एक धर्म है जिसके कारण उन सभी घटों में अन्य प्रकार का भेद होने पर भी “यह घट है" इस अनुगत व्यवहार की उत्पति होती है और घट से भिन्न वस्तुओं में उस धर्म के न होने से उक्त व्यवहार नहीं होता। इस प्रकार जब अनुगत व्यवहार की व्यवस्था करने वाले धर्म की विभिन्न कालों में एकता और स्थिरता मानी गयी तब उन्हीं धर्मों में क्षणिकता के साधनार्थ उपन्यस्त सत्ता आदि हेतुओं के क्षणिकता का व्यभिचारी हो जाने से विश्वमात्र की क्षणिकता का साधन कैसे हो सकता है ? प्यासे और भूखे मनुष्य की पानी पीने और भोजन करने में जो प्रवृत्ति होती है उसके अनुरोध से भी विश्व की क्षणिकता के अभिनिवेश का परित्याग करना आवश्यक है। प्यासा मनुष्य नया पानी पीने में और भूखा मनुष्य नया भोजन ग्रहण करने में प्रवृत्त होता है, यह क्यों ? इसीलिये न, कि, उसने समझ लिया है कि
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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