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________________ ( ६० ) व्यावृत्तिरूपता की आनुमानिक सिद्धि में बाधक हो जायगा, अतः उक्त न्यायों में उपात्त हेतु कालात्ययापदिष्ट बाधितसाध्यक हो जायगे। उक्त न्यायों में पहले न्याय में जिस भावाभावसाधारण्यरूप हेतु का उपन्यास किया गया है उसकी दुर्वचनीयता भी है, जैसे भावाभावसाधारण्य का क्या अर्थ है ? (१) भाव और अभाव इस उभय का अभेद ? ( २ ) भाव और अभाव इन दोनों में रहना ? ( ३ ) भाव और अभाव-इन दोनों की आश्रयता ? ( ४ ) भाव और अभाव-इन दोनों की सादृश्यरूपता ? ( ५ ) अथवा “अस्ति" और "नास्ति' इन दोनों शब्दों के साथ प्रयुज्यमानता? (१) इनमें पहला अर्थ नहीं लिया जा सकता, क्योंकि भाव और अभाव में अत्यन्त भिन्नता होने के कारण उन दोनों का अभेद एकत्र असम्भव होने से हेतु की स्वरूपासिद्धि हो जायगी। दूसरा अर्थ भी नहीं ग्रहण किवा जा सकता, क्योंकि जलत्वादि धर्मों का अस्तित्व अभाव में नहीं माना जाता अतः जलत्वादि-धर्म-रूप पक्ष में हेतु का अभाव होने से हेतु की स्वरूपासिद्धि होगी। तीसरा अर्थ भी ग्राम नहीं हो सकता, क्योंकि व्यक्ति में भाव और अभाव की आश्रयता है किन्तु उसमें अभावैकरूपता नहीं है, अतः व्यक्ति में हेतु साध्य का व्यभिचारी हो जायगा। __ चौथा अर्थ भी स्वीकार के योग्य नहीं है, क्योंकि जलत्वादि धर्म अभावनिष्ठ न होने के कारण भाव और अभाव के सादृश्य-रूप नहीं हो सकते, जो धर्म सादृश्य के प्रतियोगी और अनुयोगी दोनों में रहता है, वही सादृश्य-रूप होता है, जैसे चन्द्र और मुख इस उभय में रहने वाला आह्लादकरत्व उन दोनों का सादृश्य कहलाता है, जलत्वादि धर्म जलादि-रूप भाव वस्तुओं में रहते हैं, पर अभाव में नहीं रहते, अतः उन में भावाभाव-सादृश्य-रूपता की असिद्धि हो जायगी। पाँचवा अर्थ भी उपादानाह नहीं है, क्योंकि "अस्ति" शब्द देश विशेष और कालविशेष के सम्बन्ध का बोधक होता है और "नास्ति' शब्द देशविशेष और कालविशेष के असम्बन्ध का बोधक होता है, इसलिये जिन वस्तुओं में किसी एक देश और किसी एक काल का सम्बन्ध है और किसी अन्य देश तथा किसी अन्य काल का असम्बन्ध भी है ऐसी सभी वस्तुओं का "अस्ति" तथा "नास्ति"
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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