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( ४१ ) दृष्टान्त की असिद्धि-जिस धर्मी में साध्य और साधन दोनों का सम्बन्ध वादी और प्रतिवादी दोनों को स्वीकृत हो उसे दृष्टान्त कहा जाता है। उक्त नियम में खरहे की सींग आदि दृष्टान्त बताये गये हैं। पर यह बात ठीक नहीं हो सकती, क्योंकि खरहे की सींग जैसे पदार्थ अलीक हैं। अतः उनमें साध्यसाधन के सम्बन्ध की स्वीकृति वादी और प्रतिवादी को सम्मत नहीं हो सकती। यह भी व्यतिरेक-नियम में दोष है ।
__ इन दोषों के समाधान में बौद्धों का कथन यह है कि जैसे शब्दप्रयोगात्मक व्यवहार में शब्दार्थ की सत्ता अपेक्षित नहीं होती किन्तु उसका ज्ञानमात्र अपेक्षित होता है और ज्ञान के लिये भी विषय का अस्तित्व आवश्यक नहीं होता क्योंकि सीपी में अविद्यमान चाँदी एवं रस्सी में अविद्यान साँप का ही ज्ञान होता है, इसलिये खरहे की सींग, कछुये का रोम, आकाश का फूल इस प्रकार के व्यवहार होते हैं। ठीक वैसे ही अनुमान में भी पक्ष, हेतु और दृष्टान्त की अस्तिता अपेक्षित नहीं होती किन्तु उनका ज्ञानमात्र अपेक्षित होता है और ज्ञान तो उनकी सत्ता न मानने पर भी हो सकता है। अतः कहे गये पक्षासिद्धि आदि दोषों की सम्भावना नहीं है, इसलिये उक्त व्यतिरेक-नियम के बल से होने वाले अनुमान में कोई बाधा नहीं हो सकती। ___इस पर नैयायिक का कहना यह है कि व्यवहार भी व्यवहरणीय अर्थ के प्रामाणिक ज्ञान के विना नहीं होता, इसलिये असत्-सम्बन्धी व्यवहार स्वयं असिद्ध है फिर उसके दृष्टान्त से असत्पक्षादिमूलक अनुमान का समर्थन कैसे हो सकता है ? ___ इस पर बौद्ध की ओर से नैयायिक के प्रति यह प्रश्न किया जा सकता है कि नैयायिक को असत् की प्रामाणिकता के निषेध का व्यवहार सम्मत है या नहीं। यदि सम्मत न हो तो असत् की प्रामाणिकता प्रसक्त होगी और यदि सम्मत हो तो इस निषेध-व्यवहार के प्रामाणिक ज्ञान के विना ही होने से, 'व्यवहार अर्थ के प्रामाणिक ज्ञान के बिना नहीं होता' इस वचन का विरोध होगा। इसलिय नैयायिक को व्यवहार की प्रामाणिकज्ञानमूलकता का आग्रह छोड़ना होगा।
नैयायिक इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देते हैं-जिन शब्दों या वाक्यों का विशिष्ट अर्थ अप्रसिद्ध है उनका भावात्मक व्यवहार अर्थात् खरहे को सींग होती है या खरहे की सींग सुन्दर होती है ऐसा व्यवहार नहीं होता, क्योंकि उसका विषय प्रामाणिक नहीं है, पर निषेधात्मक व्यवहार अर्थात् 'खरहे को सींग नहीं होती' या 'खरहे की सींग में सौन्दर्य नहीं होता' ऐसा व्यवहार हो