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सारे विश्व में क्षणिकता का साधन करने के लिये, जो सत् होता है वह सभी क्षणिक होता है - ऐसे जिस अन्वय- नियम का अवलम्बन बौद्ध करते हैं, उसकी असिद्धि का वर्णन चौथी कारिका से अठारहवीं कारिका तक विस्तार से किया गया है। अब इस कारिका में व्यतिरेक नियम तथा तन्मूलक अनुमान की भी असिद्धि बतायी जायगी जिससे उसका सहारा लेकर भी बौद्ध विश्व की क्षणिकता - साधन करने का मनसूबा न बांध सकें ।
विश्व की क्षणिकता का साधन करने के लिये जिस व्यतिरेक- नियम का अवलम्बन बौद्ध करते हैं वह दो प्रकार का हो सकता है ।
जैसे -
( १ ) जो क्षणिक नहीं होता वह सत् नहीं होता ।
( २ ) अथवा जो क्रम एवं अक्रम दोनों प्रकार से कार्य का अनुत्पादक होता है वह असत् होता है ।
इन दोनों नियमों में ख रहे की सींग जैसे अलीक पदार्थ दृष्टान्तरूप से और स्थायीभाव पक्षरूप से प्रयुक्त होते हैं । इन व्यतिरेक नियमों के बल स्थिर भाव की असत्ता का साधन होने से फलतः क्षणिक की सिद्धि सम्पादित होती है।
इस कारिका में निम्नांकित दोषों से इन व्यतिरेक- नियमों की तथा तन्मूलक अनुमान की असिद्धि का वर्णन है । वे दोष ये हैं पक्ष की असिद्धि, हेतु की असिद्धि और दृष्टान्त को असिद्धि ।
पक्ष की असिद्धि - सन्दिग्ध साध्य के आधारभूत धर्मी को पक्ष कहा जाता है । इसकी असिद्धि कहीं साध्य के अभाव से और कहीं धर्मों के अभाव से होती है । प्रकृत बौद्धानुमान में असत्ता साध्य है और स्थायीभाव धर्मी है । इसलिये यहाँ बौद्धमत में स्थिर भाव रूप धर्मी की असिद्धि और अन्य मत में साध्य की असिद्धि होने से पक्ष की असिद्धि है । यह व्यतिरेकमूलक अनुमान में दोष है ।
हेतु की असिद्धि - बौद्धमत में सत् में अक्रमकारिता तथा न्यायमत में क्रमकारिता का अभाव नहीं माना जाता । अतः किसी मत में सत् में क्रम - यौगपद्याभाव सिद्ध नहीं है । असत् में भी यह अभाव नहीं माना जा सकता। क्योंकि असत् स्वयं अप्रामाणिक है तो उसमें अभाव कैसे सिद्ध हो सकता है । इसलिये उक्त हेतु की सिद्धि भी नहीं है । यह व्यतिरेक-नियम में दोष है ।