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________________ ( ३६ ) भागभेद से मानते हैं। जैसे एक ही वृक्ष में शाखा और मूल इन दो भागों में कपिसंयोग और उसका अभाव माना जाता है । व्याप्त्यप्रदर्शनमिदं व्यतिरेकसिद्धा वप्युच्चकैः क्षतिकरं त्वदनाश्रवस्य । श्वासादिकं ज्वर इवात्र च पक्षहेतु दृष्टान्तसिद्धिविरहादधिकोऽपि दोषः ॥ १९ ॥ हे परमेश्वर ! तुम सब कामनाओं से परे हो, किसी मतविशेष के प्रतिपादन में तुम्हारा कोई आग्रह नहीं है, जो सत्य है वही तुम निष्पक्ष-भाव से कहते हो, वस्तु न सर्वथा नित्य है और न सर्वथा क्षणिक-यही तुम्हारा निष्पक्ष, निर्मल उपदेश है, फिर भी बौद्ध इसे न मानकर विश्व की क्षणिकता का साधन करने का प्रयास करते हैं, परन्तु उनका प्रयास सफल नहीं हो सकता, क्योंकि बीज आदि वस्तुओं में क्षणिकता की सिद्धि न हो सकने के कारण सत्ता और क्षणिकता के अन्वयसहचार का भयोदर्शन नहीं हो पाता. अतः सत्ता में क्षणिकता की अन्वयव्याप्ति का निश्चय नहीं होता । अतः जैसे अन्वयव्याप्ति का समर्थन एवं अन्वयव्याप्तिमूलक अनुमान का उपपादन उनके लिये अशक्य होता है उसी प्रकार 'जो क्षणिक नहीं वह सत् नहीं, तथा 'जो क्रम से अथवा युगपत् अर्थात् एक ही साथ अपने कार्यों को नहीं करता वह सत् नहीं' इन दो प्रकार के व्यतिरेक-नियमों की सिद्धि तथा तन्मूलक अनुमान भी नहीं हो सकते। क्योंकि जैसे अन्वय-व्याप्ति के निश्चय के लिये हेतु में साध्यसहचार का भूयोदर्शन आवश्यक होता है उसी प्रकार व्यतिरेकव्याप्ति के निश्चय के लिये भी साध्याभाव में साधनाभाव के सहचार का भूयोदर्शन अपेक्षित होता है, परन्तु प्रकृत में स्थैर्यवादी और क्षणिकवादी दोनों को सम्मत कोई ऐसा आश्रय नहीं है जिसमें साध्याभाव और साधनाभाव के सहचार का दर्शन हो । इस प्रकार अन्वयमूलक अनुमान के समान व्यतिरेकमूलक अनुमान में भी व्याप्त्यसिद्धि दोष है। सब अनर्थों के मूलभूत कामनाओं से ऊँचे उठे हुये हे परमेश्वर ! तुम्हारे उपदेश में आस्था न रखने वाले बौद्ध की, सत्ता में क्षणिकता की अन्वयव्याप्ति के समर्थन की जो यह असमर्थता है, वह व्यतिरेक-सिद्धि-जो क्रमकारी तथा अक्रमकारी नहीं होता वह असत् होता है इस अभावाश्रयी नियम की सिद्धि में भो बाधक है। इसके अतिरिक्त ज्वर में श्वास वृद्धि, मूर्छा तथा प्रलाप आदि के समान उक्त व्यतिरेक-नियम की सिद्धि में अन्य भी दोष हैं जैसे पक्ष, हेतु, और दृष्टान्त की असिद्धि ।
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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