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( १२ ) विपरीतानुमान से असामर्थ्य का साधन कर उसे अङ्करजनन में समर्थ क्षेत्रस्थ बीज से भिन्न सिद्ध करने की जो चेष्टा की थी उसका निराकरण सामर्थ्य की दुर्वचता और समर्थव्यवहार की व्याप्तिहीनता बताकर स्थैर्यवादियों ने किया उसके फलस्वरूप बौद्ध के साथ चलती स्थैर्यवादी की कथा का पूर्व रूप सम्पन्न हुआ और इस समय स्थैर्यवादी का इतना ही लक्ष्य होने के कारण इतना हो जाने से वह अपने दायित्व से मुक्त हो गया।
परपक्ष का खण्डन कर देने से वादी को विश्राम लेने का अवसर प्राप्त होने पर भी यदि पूर्वपक्षवादी विजय की विफल कामना का परित्याग कर विनीत भाव से प्रस्तुत विषय के बारे में उससे कुछ पूछ देता है तो उसका कर्तव्य बढ़ जाता है और उसे उस प्रश्न का समुचित उत्तर देना ही पड़ता है । इसी नियम के अनुसार प्रकृत अक्षेपकारित्व और क्षेपकारित्व इन दो धर्मों में से किसे वस्तु-स्वभाव के रूप से स्वीकार करना चाहिये ? बौद्ध के इस प्रश्न का उत्तर स्थैर्यवादी नैयायिक एवं जैन को देना है। बौद्ध के प्रश्न पर न्यायमतानुसार वस्तुम्वभाव का निरूपण___ अक्षेपकारित्व जिसके दूसरे नाभ शीघ्रकारित्व और अविलम्बकारित्व भी हैं, उसके ये दो रूप प्राप्त होते हैं। (१) अपनी उत्पत्ति के ठीक बाद वाले क्षण में ही अपने समस्त कार्यों को कर देना। (२) सहकारियों का सन्निधान होने के क्रम के अनुसार अपने विभिन्न कार्यों को कम से करना। इसी प्रकार क्षेपकारित्व जिसका दूसरा नाम विलम्बकारित्व है, उसके भी दो रूप प्राप्त होते हैं। (१) सहकारियों का सन्निधान न होने तक कार्य को न उत्पन्न करना । (२) कभी भी किसी कार्य को न उत्पन्न करना ।
इस प्रकार वस्तु के चतुर्विध स्वभाव प्राप्त हैं, इनमें अक्षेपकारित्व का पहला प्रकार या क्षेपकारित्व का दूसरा प्रकार वस्तु-स्वभाव के रूप में कथमपि स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि प्रत्येक वस्तु अपनी उत्पत्ति के ठीक बाद ही अपने सभी कार्य कर देती है अथवा जगत् में कोई ऐसी भी वस्तु है जो कभी भी कोई कार्य नीं उत्पन्न करती, इन दोनों बातों को सिद्ध करनेवाला कोई प्रमाण नहीं है, अतः अक्षेपकारित्व के दूसरे प्रकार एवं क्षेपकारित्व के प्रथम प्रकार को ही वस्तु-स्वभावता प्राप्त होती है, इस स्थिति में अक्षेपकारित्व शब्द का दूसरा अर्थ लेने पर अक्षेपकारित्व ही वस्तु का स्वभाव माना जायगा, एवं क्षेपकारित्व शब्द से उसके कथित दो रूपों में से पहले को ग्रहण करने पर क्षेपकारित्व ही वस्तु का स्वभाव माना जायगा।