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________________ ३८६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । यथा बंधंचिंतयन् बंधनबद्धो न प्राप्नोति विमोक्षं । तथा बंधांश्चिंतयन् जीवोऽपि न प्राप्नोति विमोक्षं ॥ २९९ ॥ बंधचिंता प्रबंधो मोक्षहेतुरित्यन्ये तदप्यसत्, न कर्मबद्धस्य बंधर्चिताप्रबंधज्ञानमात्रं मोक्षहेतुरहेतुत्वात् निगडादिवद्धस्य बंधचिताप्रबंधवत् । एतेन कर्मबंधविषयचिंताप्रबंधात्मकविशुद्धधर्मध्यानांधबुद्धयो बोध्यं ॥ २९९ ॥ [ मोक्ष कस्तर्हि मोक्षहेतुः ? इति चेत्; जह बंधे छित्तूण य बंधणवद्धो उ पावइ विमोक्खं । तह बंधे छित्तूण य जीवो संपावइ विमोक्खं ॥ २९२ ॥ जीवोऽपि प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबंधं चिंतयमानः स्वशुद्धात्मावाप्तिलक्षणं मोक्षं न लभते । किं च समस्त शुभाशुभबहिर्द्रव्यालंबनरहितचिदानंदैकशुद्धात्मावलंबन स्वरूपवीतरागधर्मध्यानशुक्लध्यामरहितो जीवः, बंधप्रपंचरचनाचिंतारूपसरागधर्मध्यानशुभोपयोगेन स्वर्गादिसुखकारणपुण्यबंधं लभते न च मोक्षमिति भावार्थः ॥ २९९ ॥ अथ कस्तर्हि मोक्षहेतुरिति प्रश्ने प्रत्युत्तरं ददाति;जह बंधे मुत्तूण य बंधणबद्धो य पावदि विमोक्खं तह बंधे मुत्तूण य जीवो संपावदि विमोक्खं यथा बंधनबद्धः कश्चित्पुरुषो रज्जुबंधं शृखलाबंधं काष्ठनिगलबंधं वा कमपि बंधं छित्त्वा कमपि भित्त्वा कमपि मुक्त्वा स्वकीयविज्ञानपौरुषबलेन मोक्षं प्राप्नोति । तथा जीवोsपि वीतरागनिर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानयुद्धेन बंधं छित्वा द्विधा कृत्वा भित्त्वा विदार्य मुक्त्वा छोटयित्वा च निजशुद्धात्मोपलंभस्वरूपमोक्षं प्राप्नोतीति । अत्राह शिष्यः - प्राभृतग्रंथे यन्निर्विकल्पस्वसंवेदनज्ञानं भण्यते तन्न घटते । कस्मात् ? इति चेत् तदुच्यते - सत्तावलोकनरूपं चक्षुवह भी बंधके अभावरूप मोक्षका कारण नहीं है क्योंकि यह चिंताका प्रबंध बंधसे छूटका हेतु नहीं है । जैसे बेडी ( सांकल ) से बंधा हुआ पुरुष उस बंधकी चिंता ही किया करे छूटने का उपाय न करे वह उस बेडी आदिके बंधनसे नहीं छूटता उसीतरह कर्मबंधकी चिंता प्रबंधसे मोक्ष नहीं है । इसकथनसे कर्मबंध में चिंता प्रबंधस्वरूप विशुद्ध धर्मध्यानकर जिनकी बुद्धि अंधी है उनको समझाया है ॥ भावार्थ — कर्मबंधकी चिंतामें मन लगा रहे सोच किया करे तो भी मोक्ष नहीं होती । यह धर्मध्यानरूप शुभपरिणाम है । जो केवल शुभपरिणामसे ही मोक्ष मानते हैं उनको उपदेश है कि शुभ परिणामसे मोक्ष नहीं होती ॥ २९९ ॥ आगे पूछते हैं कि यदि बंधके स्वरूपके ज्ञानसे भी मोक्ष नहीं और उसका सोच करनेसे भी मोक्ष नहीं तो मोक्षका कारण क्या है ? ऐसा पूछनेपर मोक्ष होनेका उपाय कहते हैं; – [ यथा च ] जैसे [ बंधनबद्धः ] बंधन से बंधा पुरुष [बंधान् छित्वा तु ] बंधनको छेदकर [ विमोक्षं ] मोक्षको [ प्राप्नोति ] पाता है [ तथा च ] उसीतरह [ बंधान् छित्वा ] कर्मके बंधनको छेदकर [ जीवः ] जीव [ विमोक्षं प्राप्नोति ]
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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