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________________ अधिकारः ३] समयसारः । २२७ मुक्त्वा निश्चयार्थं व्यवहारेण विद्वांसः प्रवर्तते । परमार्थमाश्रितानां तु यतीनां कर्मक्षयो विहितः॥१५६ ॥ यः खलु परमार्थमोक्षहेतोरतिरिक्तो व्रततपःप्रभृतिशुभकर्मा केषांचिन्मोक्षहेतुः स सर्वोऽपि प्रतिषिद्धस्तस्य द्रव्यान्तरस्वभावत्वात् तत्स्वभावेन ज्ञानभवनस्याभवनात् । परमार्थमोक्षहेतोरेवैकद्रव्यस्वभावत्वात् तत्स्वभावेन ज्ञानभवनस्य भवनात् । "वृत्तं ज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं सदा । एकद्रव्यस्वभावत्वान्मोक्षहेतुस्तदेव तत् ॥ १०७ ॥ वृत्तं कर्मस्वभाश्चयमोक्षमार्गहेतोः शुद्धात्मस्वरूपात् यदन्यच्छुभाशुभमनोवचनकायव्यापाररूपं कर्म तन्मोक्षमार्गो न भवति इति प्रतिपादयति;-मोतूण णिच्छयहूं ववहारे निश्चयार्थ मुक्त्वा व्यवहारविषये ण विदुसा पवति विद्वांसो ज्ञानिनो न प्रवर्तते । कस्मात् ? । परमट्ठमासिदाण दु जदीण कम्मक्खओ होदि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रैकाग्र्यपरिणतिलक्षणं निजपंडित जन [निश्चयार्थ] निश्चयनयके विषयको [ मुक्त्वा ] छोड़ [ व्यवहारेण ] व्यवहारकर [प्रवर्तते] प्रवर्तते हैं [तु ] परंतु[ परमार्थ ] परमार्थभूत आत्मस्वरूपको [आश्रितानां] आश्रित [ यतीनां ] यतीश्वरोंके ही [ कर्मक्षयः ] कर्मका नाश [विहितः] कहा गया है। व्यवहारमें प्रवर्तनेवालेका कर्मक्षय नहीं होता ॥ टीकाकितनों ही के तो ऐसा मोक्षका कारण माना है कि परमार्थभूत मोक्षके कारणसे रहित और व्रत तप आदिक शुभ कर्म स्वरूपसे ही मोक्ष है। ऐसा मोक्षका हेतु मानना सभी निषेध किया गया है क्योंकि ऐसे मोक्षके कारणके अन्यद्रव्यका स्वभावपना है उस स्वभावकर ज्ञानके परिणमनका न होना है । ज्ञानका परिणमन परमार्थसे शुभ अशुभरूप नहीं है परमार्थभूत जो मोक्षका कारण उसीके एक द्रव्यका स्वभावपना है उस स्वभावकरके ही ज्ञानके परिणमनका होना है ॥ भावार्थ-मोक्ष आत्माके होती है उसका कारण भी आत्माका स्वभाव ही होना चाहिये । जो अन्य द्रव्यका स्वभाव हो उसकर आत्माके मोक्ष कैसे हो ? यह निश्चयनयका मत है । इसलिये शुभकर्म पुद्गलद्रव्यका स्वभाव है वह आत्माके मोक्षका कारण नहीं है। ज्ञान आत्माका स्वभाव है वही आत्माके परमार्थभूत मोक्षका कारण है ॥ अब इसी अर्थके कलशरूप दो श्लोक कहते हैं-वृत्तं इत्यादि । अर्थजो ज्ञानस्वभावकर वर्तना ज्ञानका होना वही मोक्षका कारण है क्योंकि ज्ञानके ही एक आत्मद्रव्यका स्वभावपना है और जो कर्मस्वभावकर वर्तना है वह ज्ञानका होना नहीं है वह कर्मका वर्तना मोक्षका कारण नहीं है क्योंकि कर्मके अन्य द्रव्यका स्वभावपना है । भावार्थ-मोक्ष आत्माके होती है इसलिये आत्माका स्वभाव ही मोक्षका कारण होसकता है और ज्ञान आत्माका स्वभाव है वही मोक्षका कारण है । तथा कर्म अन्य ( पुद्गल ) द्रव्यका स्वभाव है इसलिये आत्माके मोक्षका कारण नहीं होता यह निश्चय है ॥ आगे अगले कथनकी सूचनाका श्लोक कहते हैं-कर्म है वह मोक्षके कारणोंका
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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