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________________ समयसारः। अधिकारः ३] २२५ म्यग्दर्शनज्ञानचारित्रस्वभावपरमार्थभूतज्ञानभवनमात्रमैकाग्र्यलक्षणं समयसारभूतं सामायिकं प्रतिज्ञायापि दुरंतकर्मचक्रोत्तरणक्लीबतया परमार्थभूतज्ञानानुभवनमात्रसामायिकमात्मस्वभावमलभमानाः प्रतिनिवृत्तस्थूलतमसंक्लेशपरिणामकर्मतया प्रवृत्तमानस्थूलतमविशुद्धपरिणामकर्माणः कर्मानुभवगुरुलाघवप्रतिपत्तिमात्रसंतुष्टचेतसः स्थूललक्ष्यतया सकलं कर्मकांडमनुन्मूलयंतः स्वयमज्ञानादशुभकर्म केवलं बंधहेतुमध्यास्य एवं व्रतनियमशीलतपःप्रभृतिशुभकर्मबंधहेतुमप्यजानतो मोक्षहेतुमभ्युपगच्छंति ॥ १५४ ॥ अथ परमार्थमोक्षहेतुस्तेषां दर्शयति; जीवादीसद्दहणं सम्मत्तं तेसिमधिगमो णाणं । रायादीपरिहरणं चरणं एसो दु मोक्खपहो ॥ १५५ ॥ जीवादिश्रद्धानं सम्यक्त्वं तेषामधिगमो ज्ञानं ।। रागादिपरिहरणं चरणं एष तु मोक्षपथः ॥ १५५ ॥ मोक्षहेतुः किल सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रं । तत्र सम्यक्दर्शनं तु जीवादिश्रद्धानस्वभामजानंतः संत इति । किं च निर्विकल्पसमाधिकाले व्रताव्रतस्य स्वयमेव प्रस्तावो नास्ति । अथवा निश्चयव्रतं तदेवेत्यभिप्रायः । इति वीतरागसम्यक्त्वरूपां शुद्धात्मोपादेयभावनां विना व्रततपश्चरणादिकं पुण्यकारणमेव भवति तद्भावनासहितं पुनर्बहिरंगसाधकत्वेन मुक्तिकारणं चेति व्याख्यानमुख्यत्वेन गाथाचतुष्टयं गतं ॥१५४॥ एवं गाथादशकेन पुण्याधिकारः समाप्तः ॥ अथ सविकल्पत्वापराश्रितत्वाच्च निश्चयेन पापाख्यानमुख्यत्वेन, अथवा निश्चयव्यवहारमोक्षमार्गमुख्यत्वेन जीवार्थपनेके अभावकर परमार्थभूत ज्ञानके होनेमात्र जो सामायिक चारित्रस्वरूप आत्माका स्वभाव उसको पाते हुए अतिशयकर स्थूल संक्लेशपरिणामस्वरूप कर्मसे तो निवृत्त हुए हैं और अतिशयकर मोटे विशुद्ध परिणामरूप कर्मकर प्रवर्ते हैं वे कर्मके अनुभवका गुरुपना और लघुपनेकी प्राप्तिमात्रसे ही संतुष्टचित्तवाले हुए स्थूललक्ष्यतारूप स्थूल अनु भव गोचर संक्लेशरूप कर्मकांडको तो छोड़ते हैं परंतु समस्त कर्मकांडको मूलसे नहीं उखाड़ते वे आप ही अपने अज्ञानसे अशुभकर्मको ही केवल बंधका कारण निश्चयकर व्रत नियम शील तप आदिक शुभकर्मबंधके कारणको बंधका कारण नहीं जानते उसको मोक्षका कारण मानते हैं अंगीकार करते हैं वे परमार्थसे बाह्य हैं ॥ भावार्थ-कितने ही जीव अतिसंक्लेशपरिणामरूप कर्मको तो बंधका कारण जान छोड़ते हैं और अतिविशुद्धता परिणामरूप कर्म सहित वर्तते हैं कर्मका बहुत थोड़ापनामात्र ही बंध मोक्षका कारण जानते हैं तथा सकल कर्मोंसे रहित अपना स्वरूप मोक्षका कारण नहीं जानते वे अशुभकर्मको छोड़ व्रत नियम शीलतपरूप शुभकर्मको ही मोक्षका कारण मान अंगीकार करते हैं। वे व्रत आदिको पालते हुए भी अज्ञानी ही हैं परमार्थको नहीं जानते॥१५४॥ आगे ऐसे जीवोंको परमार्थस्वरूप मोक्षका कारण दिखलाते हैं;-[जीवादिश्रद्धानं] २९ समय.
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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