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________________ प्रमाण - नय - निक्षेप जो अपने और अर्थ के स्वरूप का निश्चय कराता है - वह ज्ञान प्रमाण है। ___श्रुत प्रमाणसे जिस अनन्त धर्मात्मक वस्तु का प्रतिपादन होता है उसके एक अंश का प्रतिपादन करनेवाले और अन्य अंशों का निषेध न करनेवाले जो ज्ञान विशेष हैं - वे नय हैं। प्रकरण में जो अर्थ प्रतिपाद्य रूपसे अभिमत है, उसका बोध कराने के लिये और जो अर्थ प्रकरण के अनुकूल नहीं है उसका निराकरण करने के लिये शब्द और अर्थ के जो विशिष्ट स्वरूप हैउसको निक्षेप कहा जाता है / प्रमाण-नय और निक्षेपों के द्वारा अनन्त धर्मात्मक पदार्थ के अनेकान्त स्वभाव का ज्ञान प्राप्त होता है / एकान्तवाद से पदार्थ का स्वरुप विकृत हो जाता है, और वह राग-द्वेष का जनक बन जाता है / अनेकान्त का आश्रय करने पर व्यवहार में शान्ति और परमार्थ में सम्यक् दर्शन-ज्ञान और चारित्र की प्राप्ति होती है - जो मोक्ष प्राप्ति का मुख्य साधन है। आ. श्री विजय जिनमृगांक सूरीश्वरजी विनेय - आ. वि. रत्नभूषण सूरि MAHAVIR PRINTERS 9427104702
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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