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________________ Fax अन्वीक्षण आन्वीक्षिकी अर्थात् न्यायविद्या समस्त विद्याओं के लिये दीपक के समान उपकारक है । प्रमाणों और नयों का आश्रय लेकर अन्य विद्याएं अपने-अपने प्रतिपाद्य विषय का निरूपण करती है । वे प्रमाण और नयों का निरूपण नहीं करती । अन्य विद्याओं के द्वारा जिन साम-दंड आदि का और कृषि आदि का प्रतिपादन होता है । उनमें भी न्याय विद्या उपाय है । न्याय विद्या जिन उपायों का प्रतिपादन करती है, उन उपायों के द्वारा समस्त विद्याएँ बुद्धिमानों को लाभदायक कार्यों में प्रवृत्त करती है, और हानिकारक कार्यों से निवृत्त करती है । इस लिये जीवन में तर्क का अभ्यास शरीर में प्राण के समान आवश्यक है । समस्त जीव तर्क के अभ्यास से आत्महित की साधना में प्रवृत्त हों यही मंगल कामना......। - आ. वि. रत्नभूषण सूरि
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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