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________________ हेतु को भाप साध्य का असाधक कहते हो । यह प्रतिपक्षहेतु साध्य की सिद्धि में साधक हेतु के समान बलधारण करता है-अथवा असमान बल धारण करता है-यह विचार करना चाहिये । साधक हेत के समान बल हो तो बाध्य-बाधक भाव नहीं हो सकता । एक निर्बल हो और अन्य बलवान हो तभी बाध्य-बाधक भाव होता है । यदि आप इन विरोधी हेतुओं के बल को न्यूनाधिक कहते हैं तो न्यूनता अथवा अधिकता का निश्चय नहीं हो सकता। पक्ष. धर्मता आदिरूप हेतुओं में समान हैं इसलिये पक्षसत्त्व आदि रूपों के कारण एक हेतु प्रबल है और पक्षसत्त्व आदिके प्रभाव के कारण अन्य हेतु निर्बल है यह नहीं कहा जा सकता । मूर्खता के अभाव को सिद्धि करने के लिये शास्त्र ज्ञानरूप हेतु में जिस प्रकार पक्षसत्त्व आदि हैं। इस प्रकार मूखता की सिद्धि के लिये तत्पुत्रत्वरूप हेतु में भी पक्षसत्त्व आदि हो सकते हैं। अब यदि आप कहते हैं-एक हेतु अनुमान से बाधित है और अन्य हेतु अनुमान से बाधित नहीं है इसलिये एक हेतु में न्यून बल है और अन्य हेतु में अधिक बल है तो यह कथन भी युक्त नहीं। दोनों विरोधी हेतुओं में पक्षसत्त्व आविरूप समान भाव से हैं । अतः एक न्यून बल के कारण बाध्य और अन्य हेतु अधिक बल के कारण बाधक नहीं हो सकता । आप न्यून अधिक बलवाला होनेसे एक को अनुमान प्रमाण से बाधित कहते हैं परन्तु बल को न्यूनाधिकता में कोइ स्वतन्त्र हेतु नहीं है। बाधक अनुमान के कारण यदि बल को न्यूनाधिकता हो, तो अन्योन्याश्रय होगा। बाधक अनुमान बल की न्यूनाधिकता की अपेक्षा करती है ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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