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अतः असत्प्रतिपक्षत्व निर्दोष हेत के लिये आवश्यक रूप नहीं है। अन्यथा अनुपपत्ति ही निर्दोष हेतु का लक्षण है ।
[साध्य-स्वरूप का निरूपण] मलम्-ननु हेतुना साध्यमनुमातव्यम् । सत्र किं लक्षणं साध्यमिति चेत् ; उच्यतेअप्रतीतमनिराकृतमभीप्सितं च साध्यम् ।
अर्थ-हेतु द्वारा साध्य का अनुमान होता है तो साध्य का लक्षण क्या ?
उत्तर यह है-जो निश्चित नहीं, जो प्रमाण से बाधित नहीं और जिसको सिद्ध करने की इच्छा है वह साध्य है।
विवेचना-हेतु द्वारा साध्य का ज्ञान अनुमान कहा जाता है इसलिये साध्य के स्वरूप के विषय में जिज्ञासा होती है-अतः साध्य का लक्षण यहाँ निरूपित है। ____ 'पर्वतो वह्निमान् धूमात्'' इस प्रसिद्ध अनुमान में वह्नि साध्य है । सामान्य रूप से वह्नि प्रसिद्ध है परन्तु पुरोवर्ती पर्वत में वह निश्चित नहीं इसलिये वह अप्रतीत है । पर्वत धर्मी है कोई प्रमाण उसमें वह्नि का निषेध नहीं करता इसलिये वह्नि अनिराकृत है। द्रष्टा पुरुष को वह्नि के अनुमान को इच्छा है इसलिये बह्नि अभीप्सित है।
मूलम्:-शकिनविपरीतानध्यवसितवस्तूनां साध्यताप्रतिपत्यर्थमप्रतीतमिति विशेषणम् ।