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व्याप्ति के विरह को दोष के मूल कारण रूप में यदि न स्वीकार किया जाय तो अबाधित विषयत्व और असत्प्र. तिपक्षत्व के द्वारा निर्दोष हेतु का ज्ञान नहीं हो सकता। जब अबाधित विषयत्व का निश्चय हो तभी वह हेतु को निर्दोष सिद्ध कर सकता है। परन्तु इस हेतु का साध्य किसी अन्य प्रमाण से बाधित नहीं इस प्रकार का निश्चय अनुमिति से पूर्वकाल में नहीं हो सकता । हेतु के इस स्वरूप का निश्चय और साध्य का निश्चय परस्पर की अपेक्षा करते हैं। हेत में बाधा का अभाव है यह निश्चय हो-तो साध्य का निश्चय होता है, और साध्य का निश्चय हो, तो हेतु में बाधा के अभाव का निश्चय होता है । इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष है। किसी अन्य प्रमाण से बाधा के अभाव का निश्चया होता है, इसलिये अन्योन्याश्रय नहीं है यदि इस प्रकार कह जाय तो हेत व्यर्थ हो जायगा । जब अन्य प्रमाणों के द्वारा हेतु का माध्य बाधित नहीं है-यह निश्चय होगा तभी साध्य सिद्धि के होने से हेतु का प्रयोग व्यर्थ हो जायगा।
व्याप्ति के निश्चय में अन्योन्याश्रय दोष नहीं है। साध्य की सत्ता का निश्चय व्याप्ति के निश्चय पर आश्रित हो, तो व्याप्ति का निश्चय साध्य के निश्चय पर आश्रित है इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष हो सकता है । परन्तु व्याप्ति का निश्चय साध्य की सत्ता के निश्चय की अपेक्षा नहीं करता । तर्क प्रमाण के द्वारा व्याप्ति का निश्चय होता है । परन्तु वह तर्क-साध्य की सिद्धि नहीं करता। इसलिये तर्क के द्वारा साध्य की सिद्धि होनेसे हेतु का प्रयोग व्यर्थ होगा इस प्रकार का आक्षेप इस पक्ष में नहीं हो सकता ।
असत्प्रतिपक्षत्व भी साध्य की सिद्धि में हेतु के सामथ्य को नहीं सिद्ध कर सकता । प्रतिपक्ष हेतु के कारण तत्पुत्रत्व