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________________ मे, उसके अन्य पुत्रों के समान, इस प्रयोग में देवदत्त पक्ष है मूर्खत्व साध्य है, तत्पुत्रत्व हेतु है, उसके अन्य पुत्र-दृष्टान्त हैं। यहाँ तत्पुत्रत्व हेतु में पहले कहे तीनरूप हैं । देवदत्त पक्ष है, उसमें तत्पुत्रत्व हेतु है. अतः पक्षसत्त्व हेतु में है । उसके अन्य पुत्र सपक्ष -उनमें भी तत्पुत्रस्व हेतु है । इसलिये यहाँ हेतु में सपक्षसत्त्व है । देवदत्त से भिन्न जो यज्ञदत्त मादि विद्वान हैं-वे विपक्ष हैं । वे देवदत्त के सगे भाई नहीं हैं अर्थात् देवदत्त जिसका पुत्र है उसके वे पुत्र नहीं है। इम रीतिसे विपक्ष में असत्त्व यहां तत्पुत्रत्वरूप हेतु में है। तो भी यह हेतु निर्दोष नहीं है । इस हेतु का विरोधी हेतु भी हो सकता है। यह देवदत्त मूर्ख नहीं हैशास्त्र का ज्ञाता होने से, इस रीति से विरोधो हेतु का प्रयोग हो सकता है । शास्त्र ज्ञान रूप हेतु मूर्खता का निषेध करता है । इस विरोधी हेतु से युक्त होने के कारण तत्पुत्रत्व हेतु सत्प्रतिपक्ष है और इसलिये हत्यामास है । इस दोष के निषेष के लिये 'असत्प्रतिपक्षत्व' नामक हेतु का रूप होना चाहिये। मूलम्:-उदेष्यति शकटमित्यावो पक्षधर्मस्वस्यैवासिडेः, स श्यामः तत्पुरत्वादिस्यत्र हेत्वाभासेऽपि पाश्चरूप्यसवाच, निश्चितान्यथानुपपरेव सर्वत्र हेतुलक्षणवौचित्यात् । अर्थः-रोहिणीनक्षत्र का उदय होगा, इत्यादि स्थल के हेतु में पक्षधर्मता की सिद्धि नहीं है। वह श्याम है
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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