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________________ अन्य प्रमाण से निषिद्ध है वह बाधित विषय बनाना है। विषय का अर्थ यहां पर साध्य है । अन्य प्रमाणों से जिसके साध्य का निषेध होता है वह हेतु बाधित विषय है । आम्र के ये फल पके हैं-यह प्रतिज्ञा है। एक शाखा में उत्पन्न होने. से-यह हेतु है। एक शाखा में उत्पन्न जो जो फल हैं वे वे पके हुए हैं मिस प्रकार उपयोग में आये हुए आन्न के फल-यह उदाहरण है । आम्र के ये फल एक शाखा में उत्पन्न हए हैंयह उपनय है। इसलिये ये फल पके हैं यह निगमन है। इस रोति से पांच अवयवों का प्रयोग न्याय मत के अनुसार होता है। यहां पर आम्र के जो फल पके नहीं है वे पक्ष हैं और उनका पाक साध्य है । प्रत्यक्ष से ये फल अपक्व दिखाई देते हैं. इसलिये इन फलों का पाकरूप साध्य प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है। बाधित होने पर भी तीन रूप हेतु में विद्यमान हैं । अपक्व आम्रफल पक्ष हैं वे एक शाखा में उत्पन्न हुए हैं इसलिये एकशाखाप्रभवस्वरूप हेतु में पक्षसत्त्व है। उसो शाखा के जो पक्वफल हैं उनमें यह हेतु है । इसलिये सपक्षसत्त्वरूप दूसरा लक्षण इस हेतु में है । अन्यशाखाओं के जो अपक्व फल हैं-उनमें यह हेतु नहीं है । अन्य शाखाओं के अक्व फल विपक्ष हैं-उनमें यह हेतु नहीं है-अतः विपक्ष में असत्त्वरूप तृतीय लक्षण भी इस हेतु में है। तो भी यह हेतु साध्य का साषक नहीं । अत: अबाधित विषयत्वरूप चतुर्थ लक्षण हेतु के लिये आवश्यक है । यह चतुर्थरूप यहाँ पर एक शाखाप्रभवत्वरूप हेतु में नहीं है, अतः वह बाधित हेत्वाभास है । इसी रीति से असत्प्रतिपक्षस्वरूप पांचवा लक्षण भी हेतु के लिये आवश्यक है । यह देव त्त मूर्व है, उसका पुत्र होने
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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