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________________ २३१ उसका पुत्र होनेसे - यहां हेत्वाभास में भी पांचरूप हैं । निश्चित अन्यथा अनुपपत्ति ही हेतु का उचित लक्षण है | विवेचनाः- पक्ष धर्मता से घटित पांच रूपों को आप निर्दोष हेतु का लक्षण कहते हो । जब रोहिणी नक्षत्र के भावी उदय को सिद्ध करने के लिये कृत्तिका नक्षत्र का उदय हेतु होता है, तब इस हेतु में पक्ष अविद्यमान है, अतः पक्ष धर्मता नहीं है । इसलिये पक्ष धर्मता से घटित पांच रूपों का अभाव है। इस निर्दोष हेतु में अविद्यमान होनेसे पंचरूपात्मक हे तु के लक्षण में अव्याप्ति दोष है । केवल अव्याप्ति ही नहीं अतिव्याप्ति दोष भी है। मित्रा नाम की कोई नारी है, उसके चार पुत्र हैं । उनमें तीन श्याम हैं और एक गौर है जिसने तीन को देखा है और चतुर्थ गौर को नहीं देखा. वह चतुर्थ को श्याम सिद्ध करने के लिये प्रयोग करता है, वह चतुर्थ पुत्र श्याम है मित्रा का पुत्र होनेसे, जिस प्रकार उसके अन्य तीन पुत्र । यहाँ मित्रापुत्रत्व हेतु है । चतुर्थ पुत्र पक्ष है । वह मित्रा का पुत्र है इसलिये मित्रापुत्रत्वरूप हेतु पक्ष में विद्यमान है मित्रा के अन्य तीन श्याम पुत्र सपक्ष हैं। वे भी मित्रा के पुत्र हैं। इसलिये यहाँ हेतु में सपक्षसत्व भी है। जो गौर वणवाले अन्य लोग हैं, वे विपक्ष हैं । वे मित्रा के पुत्र नहीं । विपक्ष गौरों में अविद्यमान होनेसे यहाँ हेतु विपक्ष में असत् है । गौरवर्ण साध्य है उसका कोई अन्य बाधक प्रमाण नहीं है, इसलिये हेतु में अबाधित विषयत्व है । श्यामत्वरूप साध्य के विरोधी गौरवर्ण का साधक कोई प्रतिपक्ष हेतु नहीं है । इसलिये असत्प्रतिपक्षत्व 1
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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