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सूरीश्वरजी महाराज की और उनके पट्टालंकार-हमारे परमतारक गुरुदेव प्रशांतमूत्ति आचाय देव श्रीमद् विजयजितमृगांकसूरीश्वरजी महाराज की असीम कृपासे यह संपादन कार्य हो सका है । हम दोनों की शक्ति नहीं थी, पर उपरोक्त पूज्यपरमतारक गुरुदेवों के अनुग्रह से ही यह कार्य पूर्ण हुआ है। अतः हम दोनों पूज्यपाद आचार्य भगवंतों के चरणों में कोटिशः वन्दना करते हैं ।
इस प्रकाशन में तीर्थकर परमात्मा के वचन का विरोध किसी प्रकार का भी न आ जाय-इस वस्तु के लिये हम दोनों ने यथाशक्ति प्रयत्न किया है। परन्तु छद्मस्थ दशा के प्रमाद के कारण यदि कोई क्षति रह गई हो तो हम दोनों का उसके लिये 'मिच्छामि दुक्कडं' है । जिन सज्जनों को इसमें कोई त्रुटि प्रतीत हो वे हमको उसके बतलाने का कष्ट करें। ___इस ग्रथ का अभ्यास कर के तत्वज्ञान के अभिलाषी लोग तत्त्वज्ञान को प्राप्त करें और धर्म मार्ग में अग्रसर बनकर कमबन्धन से सर्वथा मुक्त होकर परमपद को प्राप्त करें यही हमारी मंगल अभिलाषा है।
वि. स. २०३१ )
कालो। पूज्यपाद प्रशांतमूर्ति परमगुरुदेव बृहस्पतिवार
आचार्यदेव प्रोमविजयजितमृगांकदिनांक ५-६-१९७५
सूरीश्वरजी म. के चरणसेवकश्रीपालनगर-जैन ! मुनि रत्नभूषणविजय उपाश्रय-वालकेश्वर- मुनि हेमभूषणविजय बम्बई-४००००६