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दोनौं को ही इस कार्य के करने के लिये प्रेरित किया। माननीय पू. मुनिजनों की आज्ञा को हम दोनों ने शिरोधार्य किया। संपादन के विषय में अनभिज्ञ होने पर भी हम दोनों ने इस कार्य को हाथ में लिया और मुद्रण का कार्य होने लगा। मुद्रणालय पिंडवाडा (राजस्थान) में है और हम दोनों यहां बम्बई में पूज्यपाद गुरुदेव के साथ हैं । इस कारण प्रकाशन में अधिक विलंब हुआ है।
यद्यपि टीकाकारने जैन सिद्धान्त को ध्यान में रख. कर अनुवाद और विवेचना की है तो भी किसी भी प्रकार की न्यूनता न रह जाय इस लिये टीका को अवलोकन के लिये पूज्यपाद विद्वद्वर्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय मुक्तिचद्रसूरीश्वरजी महाराज और पूज्य विद्वान मुनिराज श्री चद्रगुप्तविजयजी महाराज के पास भेज दिया । अनुग्रह करके इन दोनों पूज्यों ने टीकाका पर्यालोचन किया और उपयोगी सुझाव दिये, जिनका हमने परिपालन किया। इस ग्रथकी प्रस्तावना के लिये हमने पूज्यपाद शासन प्रभावक आचार्यदेव श्रीमद् विजयमुक्तिचंद्रसूरीश्वरजी महाराज से प्रार्थना की और उन्होंने संस्कृत में प्रस्तावना लिखकर हमको अनुगृहीत किया। प्रस्तावना साथ में ही मुद्रित है।
प्रस्तावना के लेखक पूज्य आचार्य प्रवरश्री ने और टीकाकारने भी ग्रथकार का सक्षिप्त चरित्र दिया है, उससे ग्रयकार का कुछ परिचय अभ्यासियों को मिल सकेगा । ग्रंथ का सामान्य परिचय भी प्रस्तावना के द्वारा जिज्ञा सुजनों को मिल जायगा। उपसंहार--
पूज्यपाद परमशासनप्रभावक सिद्धान्तप्ररूपणकदत्तचित्त शासनरक्षानिपुण आचार्यप्रवर श्रीमद् विजय रामचंद्र