SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ईश्वरचन्द्र शर्मा - [ग्रंथकार का संक्षिप्त जीवन चरित्र] उपाध्याय श्री यशोविजयजी के समकालिक श्री कान्ति विजयजी गणीने उपाध्यायजी के जीवन का जो वर्णन 'सुज. शवेली भास' नामक ग्रंथ में किया है, उसके अनुसार उपाध्यायजी गुजरात के 'कनोडु' नाम के ग्राम में उत्पन्न हुए थे। 'नारायण' नाम के व्यापारी उनके पिता थे। माता का नाम 'सोभाग दे' था । उनका पहला नाम 'जसवन्त' था। ‘पद्म. सिंह' नाम का उनका भाई था । पं. श्री 'नयविजयजी' से वि० सं० १६८८ में दोनों भाइयों ने दीक्षा ली। दीक्षा होने पर जसवन्त का नाम 'मुनि यशोविजय' और पद्मसिंह का 'मुनि पद्मविजय' रक्खा गया। उपाध्याय जी तर्क भाषा के परिच्छेदों के अन्त में पण्डित श्री पद्मविजय गणि सहोदरेण' कहकर श्री पद्मविजयजी का निर्देश करते हैं। उपाध्यायजी 'न्यायविशारद' पदवी से विभूषित थे। श्री विजय देवसूरि के शिष्य श्रीविजयप्रभसूरिजी ने उनको वि० सं० १७१८ में उपाध्याय पद दिया है। उन्होंने सौ ग्रन्थों को रचना का उल्लेख स्वयं किया है । वि० सं० १७४३ में 'डभोई गांव में उनका देहत्याग हुआ। डमोई में उनको पादुका अभी तक है।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy