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________________ १४८ कालों के साथ वृक्ष का संबंध है। स्मरण केवल अत'तकाल के साथ वृक्ष के संबंध को प्रकट करता है और प्रत्यक्ष के द्वारा वर्तमानकाल के साथ संबंध प्रकट होता है । अतः स्मरण का विषय प्रमाण से बाधित नहीं है, अतः स्मरण प्रमाण है। 'वह वृक्ष है' इस प्रतीति में 'वह वृक्ष' इतना अंश ही स्मरणरूप है । 'है' अंश स्मृतिरूप नहीं है अत: विशेष्य के साथ वर्तमानकाल के संबंध को स्मृति नहीं प्रकट करती। वर्तमानकाल स्मृति का विषय नहीं है, इसलिए उसमें स्मृति की प्रवृत्ति नहीं हो सकती। मूलम:-अनुभवप्रमात्वपारतम्यादत्राप्रमा. त्वमिति चेत्, म; अनुमितेरपि व्याप्तिज्ञानाविप्रमावपारतन्त्र्येणाप्रमात्वप्रसङ्गात् । अर्थः-स्मृति का प्रामाण्य अनुभव के प्रामाण्य के अधीन हैं इसलिए स्मृति अप्रमाण है, इस प्रकार यदि आप कहें तो युक्त नहीं है । इस रीति से जो अप्रामाण्य होता हो, तो अनुमिति का प्रामाण्य भी व्याप्तिज्ञान के प्रामाण्य पर आश्रित है, इसलिए उस में भी अप्रामाण्य आ जायगा। : विवेचना:-अनुभव से स्मरण उत्पन्न होता है. इसलिए अनुभव के अनुसार स्मरण विषय को प्रकाशित करता है। जब अनुभव प्रमाण हो तो स्मरण प्रमाण रूप में और जब अनुभव अप्रमाण हो तो स्मरण अप्रमाण रूप में प्रकट होता
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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