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________________ विरोधी अर्थ अन्धकार और प्रकाश के सपान भिन्न काल में रहते हैं । इसके अतिरिक्त इन दोनों के काल के परिमाण में भी भेद है । अर्थावग्रह का काल एक समय का है और ईहा का काल असंख्येय समय का है । इस दशा में दोनों को सत्ता एक समय में असंभव है। मूलम्-नन्ववग्रहेऽपि क्षिप्रेतरादिभेदप्रदर्शनादसङ्ख्यसमयमानत्वम् , विशेषविषयत्वं चाविसहमिति चेत् , न; तत्त्वतस्तेषामपायभेदस्वात् , कारणे कार्योपचारमाश्रित्यावग्रहभेदत्वप्रतिपादनात् , अविशेषविषये विशेषविषर. स्वस्यावास्तवत्वात् । ___ अर्थ-शंका करते हैं-अवग्रह में भी क्षिप्र और अक्षिप्र आदि भेदों का प्रकाशन है, इसलिये अवग्रह का काल भी असंख्येय समय का है और उसका विषय विशेष भी है इसमें कोई विरोध नहीं है । उत्तर में कहते हैं-क्षिप्र और अक्षिण आदि मेद वास्तव में अपाय के हैं । कारण में कार्य का उपचार करके अवग्रह के भेद रूप में प्रतिपादन है । विशेष से रहित अवग्रह में विशेष का भान सत्य रूप में नहीं हो सकता । विवेचना-शीघ्र अवग्रह करता है चिरकाल में अवग्रह करता है बहु अवग्रह करता है, अल्प अवग्रह इत्यादि रूप से अवग्रह के बारह भेदों का प्रकाशन किया जाता है । इससे प्रतीत होता है-अर्थावग्रह का काल जिस प्रकार एक समय
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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