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________________ सागारधर्मामृत [ ३०१ तथा वास्तव में व्रतका भंग होता है इसलिये भंगाभंगरूप होने से वेश्यादिके साथ विटत्व आदि तीनों ही अतिचार होते हैं । स्त्रीयोंके लिये परविवाहकरण आदि चार अतिचार तो ऊपर लिखे अनुसार ही जानना और प्रथम अतिचार इसप्रकार समझना कि जिस दिन अपने पतिकी वारी किसी सौतके यहां हो उस दिन वह उसे सौतके यहां जानेसे रोककर उससे स्वयं भोग करे तो उसके प्रथम अतिचार होता है । क्योंकि उस दिन वह अपना पति भी पर पुरुषके समान है । अथवा कारणवश जिसने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया है ऐसा अपना पति भी उसकेलिये परपुरुष के समान है यदि उसके साथ वह भोग करे तो उसके लिये वह अतिचार है । वह उस स्त्रीका पति है इसलिये बाह्य व्रतका भंग नहीं होता परंतु सौतकी वारीके दिन वह परपुरुष के समान है अथवा कारणवश ब्रह्मचर्य अवस्था में भी वह परपुरुष के समान है । इसलिये उसके साथ भोग करनेसे उसके अंतरंग व्रतका अंग होता है । इसप्रकार भंग अभंग होनेसे अतिचार होता है ॥ १८ ॥ आगे - परिग्रहपरिमाण अणुव्रतको कहते हैंममेदमिति संकल्पश्चिदचिन्मिश्रवस्तुषु । ग्रंथस्तत्कर्शनात्तेषां कर्शनं तत्प्रमावतं ॥ ५९ ॥ अर्थ- स्त्री पुत्र आदि चेतनरूप घर सुवर्ण आदि अचेतनरूप और जिनमें चेतन तथा अचेतन दोनों ही मिले
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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