SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ ] चौथा अध्याय आगे-अचौर्याणुव्रतका लक्षण कहते हैंचौरव्यपदेशकरस्थूलस्तेयव्रतो मृतस्वधनात् । परमुदकादेश्चाखिलभोग्यान्न हरेहदीत न परस्व।।४६!! अर्थ-जिसने स्थूल चोरीका त्याग किया है अर्थात् यह चोर है, यह धर्मपातकी है, यह हिंसक है इत्यादि नाम धरानेवाली चोरीको स्थूल चोरी कहते हैं अथवा किसीकी दीवाल फोडकर वा और किसीतरह विना दिया हुआ दूसरेका धन ले लेना भी स्थूलचोरी है ऐसी स्थूलचोरीका जिसने त्याग कर दिया है ऐसे अचौर्याणुव्रती श्रावकको जिसके पुत्र पौत्र आदि कोई संतान नहीं है, जो विना संतान छोडे ही भर गया है ऐसे मेरे हुये भाई भतीजे आदि कुटुंबी पुरुषके धनको छोडकर तथा जल घास मिट्टी आदि पदार्थ जोकि सार्वजनिक हैं जिनको वहांके सबलोग अथवा दूसरी जगहसे आये हुये लोग भी अपनी इच्छानुसार काममें लाते हैं, जिन्हें काममें लाने के लिये राजा वा उसके स्वामीने सामान्य आज्ञा दे रखरखी है ऐसे पदार्थोंको छोडकर बाकी सब दूसरेका विना दिया हुआ चेतन अचेतनरूप द्रव्य न तो स्वयं ग्रहण करना चाहिये और न उठाकर किसी दूसरेको देना चाहिये । भावार्थ-अचौर्याणुव्रती श्रावक जिनका कोई और वारिस नहीं है ऐसे मरे हुये कुटुंबी पुरुषोंका धन विना दिया हुआ भी ले | सकता है परंतु उनके जीवित रहते हुये उनके धनको विना RPINK.RLAITAMINADIA
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy